शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

0 मैंने इंसानियत को मरते देखा है।

|| ओ३म् ||
आज मुझे एक गहरी जानकारी एवं अनुभव से रूबरू होना पड़ा और यह ज्ञात हुआ कि इंसान जन्म नहीं लेता है बल्कि इंसान तो बनना पड़ता हैं
बात आज शाम की है यानि कि ४ नवम्बर २०११ की। शाम के करीब ७ बज रहें होंगे, मैं जरा एटीएम जा रहा था, अचानक देखता हूँ की कुछ मुस्लिम लड़के एक गाय को घेर कर खड़े थे जो कि एक पेड़ मे बंधी हुई थी। मुझे समझते देर न लगी कि ये लोग क्या कर रहे हैं, क्यूंकि दो दिन बाद बकरीद है और हफ्ते भर पहले से ही गायों को गाड़ियों में भर भर कर मंजिल (बूचड़-खाना) तक पहुचाना शुरू हो गया था।
मैं सहसा ही रुक गया और उन लोगो के पास जाकर पूछा कि आप लोग ये क्या कर रहे हो ?
इस पर पहले तो वो लोग मुझे ऊपर से नीचे तक घूरने लगे, फिर उनमे से से एक बोला कि पीछे हट जाओ ये गाय मारती है।
मैंने कहा वो तो ठीक है पर ये गाय है किसकी और क्यूँ इसे बांधे रक्खा है ? फिर उनमे से ही एक बोला कि गाय हमारी है और हम इसे चितपुर बाज़ार मस्जिद में ले जा रहे हैं, परसो नीलामी है और यह गाय कुर्बानी के लिए जा रही है।