शुक्रवार, 22 मार्च 2013

0 ईश्वर तो पागल ही होना चाहिए !

अनेक संप्रदायों का इस प्रकार है:
- इश्वर न्यायी, दयालु और परिपूर्ण है|
- यह हमारा पहेला और अंतिम जीवन है|
- इश्वर हमारी कसौटी ले रहा है|
- और इस कसौटी के परिणाम के आधार पर इश्वर हमें स्वर्ग में या तो नर्क में भेजता है|

संप्रदायों में थोड़ी सी ही भिन्नता है:
- कसौटी के प्रकार और उसका मापदंड|
- स्वर्ग और नर्क का वर्णन|
- कसौटी में खरा उतरने के लिए जरुरी जनुन या कट्टरपन की हद|

पर ये निश्चित रूप से मानते है कि, हमें एक ही जीवन मिलता है, हमारा यह जीवन इश्वर द्वारा ली जाने वाली एक कसौटी है और इस कसौटी के परिणाम के आधार पर इश्वर हमें हमेशा के लिए स्वर्ग में या तो नर्क में भेजता है|
अब हम तर्कपूर्ण प्रश्नों और उदाहरणों द्वारा संप्रदायों की मान्यताओं का विश्लेषण करेंगे और देखेंगे कि यह मान्यताएं कितनी हद तक सच्ची और विश्वसनीय है|
१. माँ के गर्भ में ही काफ़ी सारे बच्चों की मृत्यु हो जाती है| तो फ़िर यह बच्चे मृत्यु के बाद कहा जायेंगे? स्वर्ग में या नर्क में?
इन संप्रदायों के विद्वानों का मानना है कि ये बच्चे स्वर्ग में जायेंगे क्योंकि इन बच्चों ने अपने जीवन में कभी कोई बुरा काम नहीं किया|
पर मेरा प्रश्न यह है कि, क्या इन बच्चों को अपने जीवन में कोई गलत काम करने का एक भी मौक़ा मिला था?