शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

0 जातिवाद और हम

|| ओ३म् ||



आज हर जगह जातिवाद पर तांडव मचा हुआ है।
खास करके यूपी और बिहार में, सभी इसके साइड इफ़ेक्ट से अछूते नहीं है।
पर क्या कारण है की हम चाह कर भी इसे दूर नहीं कर पा रहे है? क्यों हम इस कैंसर रूपी बीमारी से निजात पाने का प्रयास नहीं कर रहे है ?
जो ब्राह्मण है वो खुद को श्रेष्ठ कहते है और शुद्रो को नीच कहते है।
पर क्या सिर्फ जन्म से ब्राह्मण होने से ही कोई श्रेष्ठ हो जाता है ?




हमारे यहाँ तो वेदों में वर्ण व्यवस्था दी गयी है।
जिसमे साफ़ कहा गया है की कर्म के अनुसार ही उपाधि दी जायेगी,
यानि की कोई ब्राह्मण का कार्य करे तो ब्राह्मण कहलायेगा।
अगर कोई ब्राह्मण के घर जन्मा शुद्र्वत कार्य करे तो वह शुद्र कहलायेगा।
इसलिए तो वेदों में श्रेष्ठो को आर्य की उपाधि दी गयी है।
आर्य शब्द श्रेष्टता का द्योतक है | और किसी की श्रेष्ठता को जांचने में पारिवारिक पृष्ठभूमि का कोई मापदंड हो ही नहीं सकता क्योंकि किसी चिकित्सक का बेटा केवल इसी लिए चिकित्सक नहीं कहलाया जा सकता क्योंकि उसका पिता चिकित्सक है, वहीँ दूसरी ओर कोई अनाथ बच्चा भी यदि पढ़ जाए तो चिकित्सक हो सकता है. ठीक इसी तरह किसी का यह कहना कि शूद्र ब्राह्मण नहीं बन सकता – सर्वथा गलत है |
इसलिए मित्रों आओ और इस जातिवाद के जंजीर को तोड़ खुद को श्रेष्ठ बनाये, खुद को आर्य बनाये।
वेद में आदेश भी दिया हुआ है
"कृण्वन्तो विश्वमार्यम्"
अर्थात सम्पूर्ण विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाओ।