गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

0 एकेश्वरवाद

||ओ३म्||






कुछ दिन पहले नेट पर एक मुस्लिम व्यक्तिका का पोस्ट पढ़ रहा था,

जिसमे लिखा था:
"
एक बंगाल के हिन्दू से पूछो "तुम किसको मानते होकहेगा "दुर्गा माता" को।, एक महाराष्ट्र के हिंदू से पूछो तुम किसको मानते हो? कहेगा "गणपति" को। एक गढवाल के हिन्दू से पूछो कि तुम किसको मानते हो? कहेगा "शिव जी" को।, किसी केरल के हिन्दू से पूछो "तुम किसको मानते
हो? " कहेगा "अयप्पा स्वामी" को। और दुनिया के किसी कोने में चले जाओ और किसी मुसलमान से पूछो तुम किसको मानते हो? पूरी दुनिया में एक ही जवाब मिलेगा: "ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद उर रसूल अल्लाह" यानि नहीं है दूसरा कोई और अल्लाह के सिवा और मुहम्मद उसके रसूल हैं"। 
मैंने सोचा इसने यदि थोडा और कष्ट उठाकर किसी बंगाल के हिन्दू से पूछा होता कि "गणपति" कौन हैं? तो जवाब मिलता प्रेम को प्रकट करता ईश्वर का एक नाम हैं! किसी महाराष्ट्र के हिन्दू से पूछा होता कि "दुर्गा" कौन हैं? तो जवाब मिलता ईश्वर का एक नाम जो मातृ शक्ति को प्रकट करता है । किसी केरल के हिन्दू से पूछ लिया होता कि शिव कौन हैं? तो जवाब मिलता सृष्टि के पालनहार एवं कल्याणकारी रूप में परमात्मा का एक नाम।
इस बात को सोचते सोचते मुझे स्वामी विवेकानंद कि कही एक बात याद आ गयी

गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

0 अम्बेडकर जयंती

 ||ओ३म्||





आज अम्बेडकर जयंती है।
वैचारिक तौर पर मैं उनसे बहुत से विषयों पर सहमत नहीं हूँ,
पर जातिवाद और उंच नीच के बेड़ियों को तोड़ने का उनका प्रयास सराहनीय है।
ऐसे समय में जब दलित भाइयो को चलते समय अपने हाथ में एक कटोरा और दूसरे हाथ में झाड़ू लेकर चलना पड़ता था ताकि
रास्ते में उनके पैरो के निसान न पड़ जाये और अगर मुह में थूक आये तो हाथ में लिए हुए कटोरे में थूकना पड़ जाये तो आप सोच सकते है