tag:blogger.com,1999:blog-59452660763508274492024-03-19T05:46:48.961-07:00आर्य युवा|| कृण्वन्तो विश्वमार्यम् ||संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-91434043084072083312017-02-07T03:00:00.003-08:002017-02-07T03:00:36.150-08:00शाकाहार और मांसाहार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b>||<span style="color: #250202;">ओ३म्||</span></b></span></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMsOhwNrOODnPSVlTMur3YdA-mbeu8O-rm_ZYZ-tQbplny0T49PiICOqAlB_3bkrLCDoHu1JhE11PGhOer1dX_5PyS0hzGGO9y3GneIDI9Yzr9wCcLLHVEoZTCcY8C80BfSDiJ02i0FpY/s1600/2000px-India_vegetarian_labels.svg.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="160" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMsOhwNrOODnPSVlTMur3YdA-mbeu8O-rm_ZYZ-tQbplny0T49PiICOqAlB_3bkrLCDoHu1JhE11PGhOer1dX_5PyS0hzGGO9y3GneIDI9Yzr9wCcLLHVEoZTCcY8C80BfSDiJ02i0FpY/s320/2000px-India_vegetarian_labels.svg.png" width="320" /></a></div>
शाकाहार एवं मांसाहार हमेशा से एक तथाकथित विवादित विषय रहा है, और अधिकतर इस विषय पर चर्चा करते हुए लोग मिल जाते है, जहाँ एक दूसरे पर अपनी वाली थोपी जाती है या कुछ मित्र ये कह कर अपना पल्ला झाड़ लेते है कि किसी के भोजन पर ऊँगली न उठायें।<br />
पर प्रश्न यह उठता है कि यहाँ किसी कौन है ?<br />
भोजन तो वह होता है जो सभी मनुष्य पर लागू हो क्योंकि सभी मनुष्यों की शारीरिक संरचना एक ही है।<br />
हमारे बड़े बुजुर्ग कहते आये है कि पहली पूँजी शरीर है।<br />
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पहले यह जानने का प्रयास करते है कि प्रकृति ने हमें क्या बनाया है। क्या मनुष्य प्रकृति रचना के अनुसार शाकाहारी है ?</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इसका निश्चय निम्न तुलनात्मक तालिका से किया जा सकता है-</div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;" trbidi="on">
<b><u>शाकाहारी प्राणी </u> </b> <u><b> मांसाहारी प्राणी</b></u></div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
१) नवजात शिशुओं की आँखे जन्म लेते ही खुली होती है। १)जन्म के समय आँखे बंद होती है ३ से ८ दिन के पश्चात् आँखे खुलती है।<br />
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: right;">
२) ये होंटो से पानी पीते है। २) जीभ से पानी पीते है।पीते समय आवाज आती है।</div>
<div style="text-align: right;">
<br /></div>
<div style="text-align: right;">
३) इन्हें पसीना आता है।। ३) इन्हें पसीना नहीं आता है।</div>
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: right;">
४) नाख़ून या खुर लंबे नहीं होते है। ४) नाख़ून और खुर लंबे होते है।</div>
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: right;">
५) दाँतो में अंतर नहीं होता, अपितु एक दूसरे के निकट होती है। ५) दाँतो में अंतर होता है।</div>
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: right;">
६) दूध के दाँत गिरने के पश्चात् नए दाँत आते है। ६) जन्म के समय दाँत होते है जो गिरते नहीं और नए </div>
<div style="text-align: right;">
दाँत आते नहीं।</div>
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: right;">
७) हरितद्रव्यों Chlorophyll को पचाने की क्षमता होती है। ७) हरितद्रव्यों को पचाने की क्षमता नहीं होती है।</div>
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: right;">
८) ये शिकार नहीं कर सकते। ८) किसी भी हथियार के बिना ही शिकार कर सकते है।</div>
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: right;">
९) शाकाहारी दीर्घायु होते है। ९) मांसाहारी अल्पायु होते है।</div>
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: right;">
१०) रक्त को पचा नहीं सकते। १०) पिए हुए रक्त को पचा सकते है।</div>
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
लेख के बड़े होने के भय से ये कुछ भेद संक्षेप में बताये गए।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इस प्रकार मूलतः शाकाहारी तथा मांसाहारी प्राणियों में अनेक भेद पाये जाते है, अब इन दोनों श्रेणियों में मनुष्य किस श्रेणी से अधिक सम्बन्ध है ये आप स्वयं विचार करे।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<a name='more'></a><br /></div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<u><b>शाकाहार का मनुष्य पर प्रभाव मांसाहार का मनुष्य पर प्रभाव</b></u></div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
१) इन पर रोगों का प्रभाव कम होता है, B.P नहीं बढ़ता, हृदयरोग नहीं होते है। १) इन पर रोगों का प्रभाव अधिक होता है, B.P बढ़ता है। हृदयरोग होते है।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
२) दौड़ने में शारीरिक श्रम करने में साँस फूलती नहीं। २) शारीरिक श्रम से साँस जल्दी फूलती है।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
३) मन संतुष्ट रहता है। ३) मन अशांत होता है।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
४) इनका रक्त क्षारयुक्त होता है। ४) इनका रक्त अमलयुक्त होता है।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
५) सत्वगुण की वृद्धि से सूक्ष्म शरीर, मन, बुद्धि, चित शुद्ध होते है तथा प्रवृति सात्विक होती है। ५) रजोगुण एवं तमोगुण की वृद्धि से सूक्ष्म शरीर में अशुद्धि बढ़ती है, दुष्प्रवृत्ति भी बढ़ने लगती है।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<u><b>ग्लोबल वार्मिंग और मांसाहार में सम्बन्ध</b></u></div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अगर आप मांस खाते है तो दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी ग्लोबल वार्मिंग के लिए आप भी जिम्मेदार है।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
१) मांस उत्पादन ज्यादा पानी की बर्बादी</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
२) ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
३) संसाधनों पर बढ़ता दबाव</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
४) जानवरो विशेषकर गाय और सुअर द्वारा सीधे उत्सर्जित मीथेन ग्लोबल वार्मिंग गैसों में कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में २३ गुना हानिकारक है</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
५) १ किलो मांस के उत्पादन में १५ से २० हजार लीटर पानी की खपत होती है वही १ किलो गेहूं के उत्पादन में मात्र २ हजार लीटर पानी की खपत होती है।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अब आप स्वयं विचारे हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कितना जहर और पानी की किल्लत छोड़ कर जा रहे है।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<u><b>मांसाहार तथा आर्थिक व्यवस्था</b></u></div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मांसाहार के कारण आर्थिक व्यवस्था भी बिगड़ जाती है। मांस के लिए प्राणियों की हत्या की जाती है, जिससे पशुजन्य दूध, खाद आदि पदार्थ का आभाव होता है। मांसाहार में घी, तेल और मसालों का प्रयोग भी अधिक मात्रा में होता है। मांसाहार के साथ-साथ शराब का प्रयोग भी बढ़ जाता है। मांस और शराब आदि के सेवन से मनुष्य व्यसनाधीन, प्रमादी और आलसी बनता है, जिसका अंत कंगाली में होता है। फलस्वरूप राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था भी प्रभावित होती है।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
लिखने को तो बहुत है मित्रो पर लेख के विस्तार भय से इसे संक्षिप्त में लिख रहा हूँ।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अंत में एक बात ईश्वर ने हमें मनुष्य बनाया है तो हमें अपना खानपान और व्यवहार भी मनुष्य की तरह ही करनी चाहिए वरना हमारे और पशु में कोई भेद नहीं रह जायेगा।</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आपका एक अदना सा वैदिक विद्द्यार्थी</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: small;"><b>संजय अग्रहरि</b></span></div>
</div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-45301351487986591912017-02-07T02:44:00.000-08:002017-02-07T02:44:28.900-08:00मैं ऐसा क्यों हूँ ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr">
<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSZJW-l5-LLRVmZHqvIl7HjkZkgLFwkga8PSYpatbohDmWh4-bzdMnCzkResbDPQPIPABDpmMhIA1N7osFHb2suIs6U1AqIM4iYltn_NGtEClYdwdcy3cjzDZIFknF1ns25Egz7jwTgW8/s1600/index.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSZJW-l5-LLRVmZHqvIl7HjkZkgLFwkga8PSYpatbohDmWh4-bzdMnCzkResbDPQPIPABDpmMhIA1N7osFHb2suIs6U1AqIM4iYltn_NGtEClYdwdcy3cjzDZIFknF1ns25Egz7jwTgW8/s1600/index.jpg" /></a></div>
<br />
मैं एक आजाद परिंदे की भाँति खुले आसमान में उड़ना चाहता हूँ, कभी इस डाल तो कभी उस डाल पर बैठना चाहता हूँ।<br />
हवाओ की भांति चहुँ वोर बह जाना चाहता हूँ, लोगो के दिलो में बस जाना चाहता हूँ।<br />
जरूरतमंदों के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर देना चाहता हूँ, अपने वतन के लिए मर जाना चाहता हूँ।<br />
इस जद्दोजहद भरी जिंदगी में बहुत कुछ करना चाहता हूँ, लेकिन न जाने क्यों <u>मैं</u> बहुत कुछ करने की तैयारी ही कर पाता हूँ।<br />
हर वो कार्य जो मेरे दिल में है, उसे कर पाने की बस तैयारी ही कर पाता हूँ।<br />
ये ऐसा क्यों हूँ मैं ये खुद को भी न कह पाता हूँ,<br />
<br />
<a name='more'></a><br />
इस रंगभरी दुनिया में इतना असहज और अंजान क्यों हूँ मैं ?<br />
न जाने कब बदलेंगी मेरी ख्वाइशें न जाने कब बदलेंगी इस जीवन की तस्वीरें ।<br />
खुद को समझा भी नहीं पाता और किसी को बता भी नहीं पता, न जाने कब टूटेगी मेरी ख़ामोशी।<br />
इस उलझन में अब उलझते जा रहा हूँ, हे प्रभु मैं तुझमे खो जाना चाहता हूँ।<br />
कौन हूँ मैं क्या हूँ मैं और क्यों हूँ मैं इसका उत्तर भी न दे पाता हूँ।<br />
मैं ऐसा क्यों हूँ, ये खुद को भी न बता पता हूँ ।</div>
</div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-31138475779903120052016-04-28T23:49:00.005-07:002016-05-16T08:33:48.567-07:00 एकेश्वरवाद <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
||<span style="color: #250202; font-size: small;"><b>ओ३म्||</b></span></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHbFOwGaoLJaFBvKVTrf8piJqjPXORBfjjdgTgaiOIOTA8zCIjoQV5yo2Zzb92V4t5fBxKDNlyBRPBJTTQNkXEHSVXneyhKl6t_n4w5NNOXH91tNo-tfNY9HEDjXIiQu5ZVYwxj_zQ9oU/s1600/images.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHbFOwGaoLJaFBvKVTrf8piJqjPXORBfjjdgTgaiOIOTA8zCIjoQV5yo2Zzb92V4t5fBxKDNlyBRPBJTTQNkXEHSVXneyhKl6t_n4w5NNOXH91tNo-tfNY9HEDjXIiQu5ZVYwxj_zQ9oU/s1600/images.jpg" /></a></div>
<br />
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<br />
<br />
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: #250202; font-size: small;"><b><span style="color: #250202; font-size: small;"><b>कुछ दिन पहले नेट पर एक मुस्लिम व्यक्ति</b><b>का का</b><b> पोस्ट पढ़ रहा था</b><b>, </b><br /><br /> <b>जिसमे लिखा था:</b><b><br /> "</b><b>एक बंगाल के हिन्दू से पूछो "तुम किसको मानते हो</b><b>? </b><b>कहेगा "दुर्गा माता"</b> <b>को।</b><b>, </b><b>एक महाराष्ट्र के हिंदू से पूछो तुम किसको मानते हो</b><b>? </b><b>कहेगा "गणपति"</b> <b>को। एक गढवाल के हिन्दू से पूछो कि तुम किसको मानते हो</b><b>? </b><b>कहेगा "शिव जी" को।, </b><b>किसी केरल के हिन्दू से पूछो "तुम किसको मानते</b> </span><span style="color: #250202; font-size: small;"><b>हो</b><b>? " </b><b>कहेगा "अयप्पा स्वामी" को। </b></span><span style="color: #250202; font-size: small;"><b>और </b></span><span style="color: #250202; font-size: small;"><b>दुनिया के किसी कोने में चले जाओ और किसी मुसलमान से पूछो तुम किसको मानते</b> <b>हो</b><b>? </b><b>पूरी दुनिया में एक ही जवाब मिलेगा: "ला इलाहा इल्लल्लाह</b><b>, </b><b>मुहम्मद उर</b> <b>रसूल अल्लाह" यानि नहीं है दूसरा कोई और अल्लाह के सिवा और मुहम्मद उसके</b> <b>रसूल हैं"।</b></span> </b></span></div>
<div style="text-align: left;">
<span style="color: #250202; font-size: small;"><b><span style="color: #250202; font-size: small;"><b>मैंने सोचा इसने यदि थोडा और कष्ट उठाकर किसी बंगाल के</b> <b>हिन्दू से पूछा होता कि "गणपति" कौन हैं</b><b>? </b><b>तो जवाब मिलता प्रेम को प्रकट</b> <b>करता ईश्वर का एक नाम हैं! किसी महाराष्ट्र के हिन्दू से पूछा होता कि</b><b> "</b><b>दुर्गा" कौन हैं</b><b>? </b><b>तो जवाब मिलता ईश्वर का एक नाम जो मातृ शक्ति को प्रकट</b> <b>करता है । किसी केरल के हिन्दू से पूछ लिया होता कि शिव कौन हैं</b><b>? </b><b>तो जवाब</b> <b>मिलता सृष्टि के पालनहार एवं कल्याणकारी रूप में परमात्मा का एक नाम।</b></span><br /> <span style="color: #250202; font-size: small;"><b>इस बात को सोचते सोचते मुझे स्वामी विवेकानंद कि कही एक बात याद आ गयी</b></span></b></span></div>
<a href="https://www.blogger.com/null" name="more"></a><span style="color: #250202; font-size: small;"><b><span style="color: #250202; font-size: small;"><b></b></span></b></span><br />
<a name='more'></a><span style="color: #250202; font-size: small;"><b><span style="color: #250202; font-size: small;"><b><br /> <br /> "</b><b>भारत में अनेक संप्रदाय देखने को मिलते हैं</b><b>, </b><b>और साथ ही यह जानकर आश्चर्य</b> <b>होता है कि ये संप्रदाय आपस में लड़ते झगड़ते नहीं! शैव यह नहीं कहता कि हर</b> <b>एक वैष्णव जहन्नुम को जा रहा है</b><b>, </b><b>न वैष्णव ही शैव को यह कहता है।</b><b>"<br /> <br /> </b><b>फिर मैंने सोचा यदि यह व्यक्ति किसी थोड़े और जानकार</b> <b>व्यक्ति से पूछ बैठता तो वह शायद कहता कि हम हिंदुओं के लिए ईश्वर की</b> <b>परिभाषा किसी दम्भी व अभिमानी राजा जैसी नहीं जो कहे कि "मुझे इसी नाम और</b> <b>इसी विधि से पाया जा सकता है!! अन्यथा तुम्हें मैं सदा सदा के लिए नर्क में</b> <b>भेज दूंगा!" यह असल में इश्वर के दयालु स्वरुप का घोर अपमान है!!!</b></span> <br /> <span style="color: #250202; font-size: small;"><b>हम हिंदुओं के लिए ईश्वर कि कल्पना उस दयालु व सर्वशक्तिमान</b><b>, </b><b>सर्वत्र</b> <b>विद्यमान समर्थ शक्ति से है जो संसार के समस्त प्राणियों को अपनी संतान व</b> <b>उनके द्वारा श्रद्धा पूर्वक कि गयी उपासना को अपनी ही उपासना मानता है!</b> </span> <br /> <span style="color: #250202; font-size: small;"><b>किसी अन्य रूप में की गयी उपासना को दंड का आधार बनाने वाला केवल वही हो</b> <b>सकता है जो सर्वज्ञाता न हो या जिसे यह संदेह हो कि "उसके सिवा कोई और भी</b> <b>है!"</b><b>, </b><b>जो पूज्य है!</b></span> <br /> <span style="color: #250202; font-size: small;"><b>सबसे मजे कि बात यह है कि यह सब कहने वाला</b> <b>वह व्यक्ति है जिसका मजहब ७३ से ज्यादा पंथों या संप्रदायों में बंटा हो और</b> <b>जिसमें से केवल एक संप्रदाय के स्वर्ग में जाने कि संभावना है! ये वही</b> <b>हैं जिनका एक संप्रदाय दुसरे को सदा सदा के लिए जहन्नुम का अधिकारी बताता</b> <b>है!</b> </span> <br /> <span style="color: #250202; font-size: small;"><b>बात केवल यहीं समाप्त नहीं होती</b><b>, </b><b>ये अपने ही दुसरे संप्रदाय के विरुद्ध हिंसक भी रहते हैं!</b></span> <br /> <span style="color: #250202; font-size: small;"><b>जिस एकेश्वरवाद को हमने प्राचीन काल से ही "एकं सदविप्रा बहुधा वदन्ति" के</b> <b>रूप में जान लिया था</b><b>, </b><b>आज ये चंद सौ साल के बच्चे हमें सिखाने आयें हैं!!</b> </span> <br /> <span style="color: #250202; font-size: small;"><b>हम हिंदू इसपर केवल मुस्करा सकते हैं!!!</b></span> </b></span></div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-86807413722891020862016-04-14T01:45:00.001-07:002016-04-28T22:41:32.939-07:00अम्बेडकर जयंती<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<b>||ओ३म्||</b></div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1vvX8cCV9f5sLZ2FVX9E6jfuS6NXCJzX0eykqcw86UvpfxQMuJQAMY-BZpTVTDTLl6KQFOaQ68S5HBitPXcbLbQS3_Oa4kX4nVbG-dTaGRj81WzO6SrQ4hjxAm3mN3WASINoCmBzRXAU/s1600/index.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1vvX8cCV9f5sLZ2FVX9E6jfuS6NXCJzX0eykqcw86UvpfxQMuJQAMY-BZpTVTDTLl6KQFOaQ68S5HBitPXcbLbQS3_Oa4kX4nVbG-dTaGRj81WzO6SrQ4hjxAm3mN3WASINoCmBzRXAU/s1600/index.jpg" /></a></b></div>
<br />
<div dir="ltr">
<i>आज अम्बेडकर जयंती है।</i><br />
<i>वैचारिक तौर पर मैं उनसे बहुत से विषयों पर सहमत नहीं हूँ,</i><br />
<i>पर जातिवाद और उंच नीच के बेड़ियों को तोड़ने का उनका प्रयास सराहनीय है।</i><br />
<i>ऐसे समय में जब दलित भाइयो को चलते समय अपने हाथ में एक कटोरा और दूसरे हाथ में झाड़ू लेकर चलना पड़ता था ताकि</i><br />
<i>रास्ते में उनके पैरो के निसान न पड़ जाये और अगर मुह में थूक आये तो हाथ में लिए हुए कटोरे में थूकना पड़ जाये तो आप सोच सकते है </i></div>
<a name='more'></a><i>की मानसिक तौर पर उनका हर रोज कितना बलात्कार होता था ?</i><br />
<i>मैं तो ऐसे परिस्थितियों को सोच कर ही काँप जाता हूँ, पर उन बेचारो ने तो उसे झेला है।</i><br />
<i>ऐसे घनघोर बादल में बारिस की बून्द की तरह अम्बेडकर का जन्म हुआ।</i><br />
<i>कीचड से निकल कर कमल की तरह खिलना ये कोई साधारण मनुष्य नही कर सकता।</i><br />
<i>नीची जाती का दर्द एक ऊँची जाती वाला कभी समझ नहीं सकता हाँ उसे महसूस करने की कोशिश भर कर सकता है।</i><br />
<i>और वही कोशिश मैं भी आज कर रहा हूँ।</i></div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-64272684471259165512016-03-23T10:29:00.001-07:002016-04-28T22:46:32.631-07:00वेद<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
|| <b>ओ३म्</b> ||</div>
<div dir="ltr">
</div>
<div dir="ltr">
</div>
<div dir="ltr">
</div>
<div dir="ltr">
<br />
<i> </i></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<i><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgevhIMpGiqHKRXe5q-QcDuLB9BhRQ8ikc8WBd1eZnrBtti2QeZdPBJisffAjjz89G4FNHWJyggbJFNBa3K6678YcR9zPiMbNB-0Kkrlr2dp2ELRkeXrMJno_IxvDjfBhL-ewmdCHPbgPc/s1600/Vedas.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgevhIMpGiqHKRXe5q-QcDuLB9BhRQ8ikc8WBd1eZnrBtti2QeZdPBJisffAjjz89G4FNHWJyggbJFNBa3K6678YcR9zPiMbNB-0Kkrlr2dp2ELRkeXrMJno_IxvDjfBhL-ewmdCHPbgPc/s320/Vedas.jpg" width="320" /></a></i></div>
<br />
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div dir="ltr">
<b><i>वेद –</i></b><br />
<i>केवल वेद ही हमारे धर्मग्रन्थ हैं ।</i><br />
<i></i><br />
<i>वेद संसार के पुस्तकालय में सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं ।</i><br />
<i>वेद का ज्ञान सृष्टि के आदि में परमात्मा ने</i><br />
<i>अग्नि , वायु , आदित्य और अंगिरा – इन चार ऋषियों को एक साथ दिया था ।</i><br />
<i>वेद मानवमात्र के लिए हैं ।</i><br />
<i>वेद चार हैं ----</i><br />
<i>१. ऋग्वेद – इसमें तिनके से लेकर ब्रह्म – पर्यन्त सब पदार्थो का ज्ञान दिया हुआ है ।</i><br />
<i>इसमें १०,५२२ मन्त्र हैं ।</i><br />
<i>मण्डल – १०</i><br />
<i>सूक्त -१०२८</i><br />
<i>ऋचाऐं – १०५८९ हैं ।</i><br />
<i>शाखा – २१</i><br />
<i>पद – २५३८२६</i><br />
<i>अक्षर - ४३२०००</i><br />
<i>ब्रह्मण - ऐतरेय</i><br />
<i>उपवेद – आयुर्वेद</i><br />
<i>२. यजुर्वेद – इसमें कर्मकाण्ड है । इसमें अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन है ।</i><br />
<i>इसमें १,९७५ मन्त्र हैं ।</i><br />
<i>अध्याय – ४०</i><br />
<i>कण्डिकाएं और मन्त्र -- १,९७५</i><br />
<i>ब्रह्मण – शतपथ</i><br />
<i>उपवेद - धनुर्वेद</i></div>
<a name='more'></a><br />
<i>३. सामवेद – यह उपासना का वेद है ।</i><br />
<i>इसमें १,८७५ मन्त्र हैं ।</i><br />
<i>ब्रह्मण – ताण्ड्य या छान्दोग्य ब्रह्मण ।</i><br />
<i>उपवेद - गान्धर्ववेद</i><br />
<i>४. अथर्ववेद – इसमें मुख्यतः विज्ञान – परक मन्त्र हैं ।</i><br />
<i>इसमें ५,९७७ मन्त्र हैं ।</i><br />
<i>काण्ड - २०</i><br />
<i>सूक्त – ७३१</i><br />
<i>ब्रह्मण – गोपथ</i><br />
<i>उपवेद - अर्थवेद</i><br />
<i>उपवेद – चारों वेदों के चार उपवेद हैं । क्रमशः – आयुर्वेद , धनुर्वेद , गान्धर्ववेद और अर्थवेद ।</i><br />
<i>उपनिषद – अब तक प्रकाशित होने वाले उपनिषदों की कुल संख्या २२३ है , परन्तु प्रामाणिक उपनिषद ११ ही हैं । इनके नाम हैं --- ईश , केन , कठ , प्रश्न , मुण्डक , माण्डूक्य , तैत्तिरीय , ऐतरेय , छान्दोग्य , बृहदारण्यक और श्वेताश्वतर ।</i><br />
<i>ब्राह्मणग्रन्थ – इनमें वेदों की व्याख्या है ।</i><br />
<i>चारों वेदों के प्रमुख ब्राह्मणग्रन्थ ये हैं ---</i><br />
<i>ऐतरेय , शतपथ , ताण्ड्य और गोपथ ।</i><br />
<i>दर्शनशास्त्र – आस्तिक दर्शन छह हैं – न्याय , वैशेषिक , सांख्य , योग , पूर्वमीमांसा और वेदान्त ।</i><br />
<i>स्मृतियां – स्मृतियों की संख्या ६५ है , परन्तु प्रक्षिप्त श्लोकों को छोङकर मनुस्मृति ही सबसे अधिक प्रमाणिक है । इनके अतिरिक्त आरण्यक , धर्मसूत्र , गृह्यसूत्र , अर्थशास्त्र , विमानशास्त्र आदि अनेक ग्रन्थ हैं ।</i><br />
<i> वेदों के छह वेदांग – शिक्षा ,कल्प , निरूक्त , व्याकरण , ज्योतिष और छन्द ।</i><br />
<i> वेदों के छह उपांग – जिन को छः दर्शन या छः शास्त्र भी कहते हैं ।</i><br />
<i>१. कपिल का सांख्य</i><br />
<i>२. गौतम का न्याय</i><br />
<i>३. पतंजलि का योग</i><br />
<i>४. कणाद का वैशेषिक</i><br />
<i>५. व्यास का वेदान्त</i><br />
<i>६. जैमिनि का मीमांसा</i></div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-5000270552984247862016-03-21T02:35:00.001-07:002016-04-28T22:48:42.764-07:00जीव हत्या पाप नहीं।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
||<b>ओ३म्||</b></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNWB6y7gkYpkQht5ISGKOMTrhPLxLQCA1DpWDFDr2pouSEDuWxae_OTIIL7RMdKg8V0ufaiJvdturfVbSwFrFvr8xsvo-mTb3xNJGEKzWkcf4VUZZGqBjKRct65WvYdfYXZJTDr5PyXFE/s1600/veg1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNWB6y7gkYpkQht5ISGKOMTrhPLxLQCA1DpWDFDr2pouSEDuWxae_OTIIL7RMdKg8V0ufaiJvdturfVbSwFrFvr8xsvo-mTb3xNJGEKzWkcf4VUZZGqBjKRct65WvYdfYXZJTDr5PyXFE/s1600/veg1.jpg" /></a></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<br /></div>
<div dir="ltr">
<i>मित्रों, आप इस </i><u><i>लेख</i></u><i> के शीर्षक को देख कर चौंक गए होंगे और सोच रहे होंगे कि ये क्या अनर्गल बात है।</i><br />
<i>'संजय ' पागल हो गया है या नशे में लिख रहा है ?</i><br />
<i>पर मित्रो मैं बिलकुल ठीक हूँ और उम्मीद करता हूँ कि इस लेख को आखिरी तक पढ़ते पढ़ते आप भी मुझसे सहमत होंगे।</i><br />
<i>ईश्वर ने हमे हर कार्य करने की आजादी दी है यहाँ तक कि हम क्या करे क्या खाये सभी में हम स्वतंत्र है, ईश्वर की तरफ से हम पर कोई रोक टोक नहीं है।</i><br />
<i>पर सभी कर्मो के फल पाने में हम परतंत्र है ये विषय ईश्वर के अधीन है हमारे अच्छे बुरे कर्मो का फल हमे समयानुसार मिलता रहता है और रहेगा।</i><br />
<i>पर प्रश्न ये है कि फिर ये पाप पुण्य का क्या चक्कर है ?</i><br />
<i>क्योंकि आये दिन हमे शाकाहारी मित्रो द्वारा सुनने को मिलता है कि जीव हत्या पाप है और मांसाहारी कहते है कि फिर तो तुम भी पापी हो क्योंकि पेड़ पौधों में भी जीव होता है।</i><br />
<i>फिर एक बहस और तर्क कुतर्क का दौर चलता है पर अंत में उत्तर कुछ नहीं निकलता दोनों पक्ष अपनी डफली अपना राग अलापते रहते है।</i><br />
<i>चलिये अब इस विषय को किसी और दृष्टिकोण से समझते है।</i></div>
<a name='more'></a><br />
<i>ईश्वर ने प्रकृति में रहने वाले सभी जीवो के लिए भोजन की व्यवस्था की हुई है, अब शेर का प्राकृतिक भोजन मांस है और पेड़ पौधे उसके भोजन नहीं है।</i><br />
<i>अब प्रकृति के नियमानुसार शेर एक हिरण को खाता है तो उसे न तो पुण्य मिलेगा और न ही उसे पाप लगेगा क्योंकि प्रकृति द्वारा निर्धारित एवं अपने जीवन को जीने के लिए उसने उसके शारीरिक रचना अनुसार भोजन किया।</i><br />
<i>अब वैसे ही मनुष्य का प्राकृतिक भोजन शाकाहार है जिसे आज वैज्ञानिक भी मान चुके है।</i><br />
<i>पेड़ पौधे में भी जीव होता है, पर क्योंकि मनुष्य प्रकृति द्वारा निर्धारित और अपने शारीरिक रचना के अनुसार पेड़ पौधे से निर्मित साग सब्जियाँ खाता है तो न ही उसे पुण्य मिलेगा और न ही पाप लगेगा।</i><br />
<i>अब ईश्वर के नियमानुसार सभी जीव अपने अपने भोजन को करते है तो किसी को जीव हत्या का पाप नहीं लगता और न ही नहीं करने पर पुण्य मिलता है ।</i><br />
<i>अब बात यहाँ पर तब बिगड़ती है जब हम प्रकृति द्वारा निर्धारित भोजन के साथ साथ विपरीत भोजन भी लेने लगते है और ईश्वरीय व्यवस्थाओ के साथ छेड़ छाड़ करने लगते है।</i><br />
<i>क्योंकि मांस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं है तो इसका दुष्परिणाम भी हमे देखने को मिलता है और आज कई तरह की बिमारियों ने हमे मांसाहार के वजह से घेर रखा है।</i><br />
<i>अब जो मांसाहारी व्यक्ति है वो खुद को नीचा हो जाने के डर से शाकाहारियों पर तरह तरह के आक्षेप लगाते रहते है उन्ही में से एक है जीव हत्या।</i><br />
<i>यहाँ एक बात स्पष्ट है कि जीव अमर है और उसकी हत्या हो ही नहीं सकती, पर फिर भी प्रकृति द्वारा निर्धारित भोजन लेने में कोई भी पाप नहीं लगता।</i><br />
<i>पाप तो तब होता है जब आप नियम के विपरीत जाकर बलात् पूर्वक किसी का रक्तपात करके भोजन करते है।</i><br />
<i>और एक बात सर्वदा सत्य है कि किये गए पापों का फल इसी पृथ्वी पर भोग कर जाना पड़ेगा क्योंकि कर्मफल सिद्धांत अकाट्य है।</i><br />
<i>हमारी शारीरिक बनावट और मांसाहारी जीवो की शारीरिक बनावट में साफ साफ अंतर दिखाई देता है।</i><br />
<i>पर आज कल फैशन के नाम पर तो कही आधुनिकता के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर मनुष्य रक्त और मांस का सेवन करने लगा है। </i><br />
<i>एक तरफ तो लाश को छू कर नहाते है दूसरी तरफ लाश को पेट में भरकर मंदिर रूपी शरीर को कब्रिस्तान बनाते है। आज तो मनुष्य कम और मनुष्य के रूप में हिंसक रक्तपात ज्यादा होते जा रहे है।</i><br />
<i>मित्रों लिखने को तो बहुत कुछ है पर लेख लंबा न हो इसलिए संक्षिप्त में लिख रहा हूँ।</i><br />
<i>मांसाहारी मित्रों एक बात सदा ध्यान रखे कि जीव हत्या पाप है या पुण्य है ये ज्यादा सोचने की बात नहीं है। इससे बढ़कर ये सोचे और आईने में खुद को देखकर बताये क्या आप एक मनुष्य कहलाने लायक है ?</i></div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-16204653534294356162016-03-19T02:43:00.001-07:002016-04-28T22:52:13.955-07:00भारत माता की जय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
|| <b>ओ३म्</b> ||</div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8RPRAGvPwctDbwEFnJiS3JMDccpNxlp7EI-h9oK_X6_jEJHY5GKGPSjDqdP9FKjBrMkjkHLfgeVwdx6b_9p9vlbJDgrzspeMgb0tvrVQ-AYRd7Z49wQwEzbrHultZ0DtvYkJf-_gGyGM/s1600/BHARAT-MATHA_jpg.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8RPRAGvPwctDbwEFnJiS3JMDccpNxlp7EI-h9oK_X6_jEJHY5GKGPSjDqdP9FKjBrMkjkHLfgeVwdx6b_9p9vlbJDgrzspeMgb0tvrVQ-AYRd7Z49wQwEzbrHultZ0DtvYkJf-_gGyGM/s320/BHARAT-MATHA_jpg.jpg" width="245" /></a></div>
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<br /></div>
<div dir="ltr">
<i>आज एक अहम् और गंभीर विषय पर कलम उठा रहा हूँ।</i><br />
<i>मातृभूमि और जननी माता हमें जीवन एवं पोषण देती है।</i><br />
<i>अब हम अपनी जननी माता की जय उनका सम्मान क्या संविधान से पूछ कर लगाएंगे ?</i><br />
<i>क्योंकि संविधान में भारत माता की जय करना नहीं लिखा इसलिए क्या मातृभूमि की जय नहीं बोल सकते ?</i><br />
<i>ओवैसी जैसे कट्टरपंथी का बयान देना केवल अपनी राजनीती जमीन तैयार करना है और कठमुल्ले इसका फायदा उसे देंगे भी,</i><br />
<i>पर क्या एक राष्ट्र में ऐसे मातृविरोधी विचारो को पनपने देना चाहिए ?</i></div>
<a name='more'></a><br />
<i>सवाल बहुत है मित्रो पर इसका हल दिखाई नहीं दे रहा है, पता नहीं किस तरफ जा रहा है हमारा प्यारा भारत देश।</i><br />
<i>वेद का आदेश है मातृभूमि वंदननीय एवं आदरणीय है।</i><br />
<i>अब आप सब इसपर विचार करे आज की परिस्तिथि में हमारा कर्त्तव्य क्या हो।</i><br />
</div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-33468137974236421312016-03-19T02:34:00.001-07:002016-04-28T22:55:32.358-07:00मनुस्मृति और वामपंथी आजादी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: center;">
<b>||</b><b>ओ३म्||</b></div>
<div dir="ltr">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIkX6mb9Fc11y6smF2zhI_aTC6Q9OPo3bb2TFdcN73Uhc4-4kGnCBPytdTkXHbIwkTQS0vRVYjur48b1MEazAaq3DAVgTK4OBHjCRo-Ndqj0aN3tzZc-OfVLWy6hQXVx_21r-_xYuhYp4/s1600/349.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIkX6mb9Fc11y6smF2zhI_aTC6Q9OPo3bb2TFdcN73Uhc4-4kGnCBPytdTkXHbIwkTQS0vRVYjur48b1MEazAaq3DAVgTK4OBHjCRo-Ndqj0aN3tzZc-OfVLWy6hQXVx_21r-_xYuhYp4/s320/349.jpg" width="214" /></a></div>
<div dir="ltr">
<b><i> </i></b><br />
<i>गुलाम देश में आज़ादी के मायने कुछ और थे,</i><br />
<i>पर आज आज़ादी के नाम पर केवल दंगे भड़काने का कार्य हो रहा है।</i><br />
<i>किसी ग्रन्थ(मनुस्मृति) में आपका विश्वास न हो तो क्या आप हिंसा पे उतर आएंगे और उसे जलाने का दुसाहस करेंगे।</i><br />
<i>तो याद रखना हिन्दू कौम सहनसील है कायर नहीं,</i></div>
<a name='more'></a><br />
<i>धैर्य का ऐसा इम्तिहान न लो की सैलाब आ जाये और तुम्हारे जैसे वामपंथी नेस्तनाबूद हो जाये।</i><br />
<i>गर माँ का दूध पिए हो तो किसी इस्लाम के ग्रन्थ को हाथ लगा कर देखो, सारी आज़ादी हवा में उड़ जायेगी।</i><br />
</div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-70836227549218094422015-10-10T06:32:00.000-07:002016-03-19T03:47:24.403-07:00जातिवाद और हम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div style="text-align: center;">
</div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><b><span style="color: red;">|| ओ३म् ||</span></b></span></div>
<br />
<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkvfLrk5JwgyN-bDzN14gFsfueCGzSkJsLqocNvz_Rj8A2OmoYchw4_zS6oJar1Mr92lHGyUKZJDihyphenhyphenzlGUONoqDktBNpWWgoE6JcAEdRWXLqBP3KOf2SlqVnAgIdta880z2fNxy4Qg2M/s1600/1368502174_diversity.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="263" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkvfLrk5JwgyN-bDzN14gFsfueCGzSkJsLqocNvz_Rj8A2OmoYchw4_zS6oJar1Mr92lHGyUKZJDihyphenhyphenzlGUONoqDktBNpWWgoE6JcAEdRWXLqBP3KOf2SlqVnAgIdta880z2fNxy4Qg2M/s320/1368502174_diversity.jpg" width="320" /></a></div>
<b>आज हर जगह जातिवाद पर तांडव मचा हुआ है।<br /> खास करके यूपी और बिहार में, सभी इसके साइड इफ़ेक्ट से अछूते नहीं है।<br />
पर क्या कारण है की हम चाह कर भी इसे दूर नहीं कर पा रहे है? क्यों हम इस
कैंसर रूपी बीमारी से निजात पाने का प्रयास नहीं कर रहे है ? <span class="text_exposed_show"><br /> जो ब्राह्मण है वो खुद को श्रेष्ठ कहते है और शुद्रो को नीच कहते है।<br /> पर क्या सिर्फ जन्म से ब्राह्मण होने से ही कोई श्रेष्ठ हो जाता है ?</span></b><br />
<br />
<b><span class="text_exposed_show"></span></b><br />
<a name='more'></a><b><span class="text_exposed_show"><br /> हमारे यहाँ तो वेदों में वर्ण व्यवस्था दी गयी है।<br /> जिसमे साफ़ कहा गया है की कर्म के अनुसार ही उपाधि दी जायेगी,<br /> यानि की कोई ब्राह्मण का कार्य करे तो ब्राह्मण कहलायेगा।<br /> अगर कोई ब्राह्मण के घर जन्मा शुद्र्वत कार्य करे तो वह शुद्र कहलायेगा।<br /> इसलिए तो वेदों में श्रेष्ठो को आर्य की उपाधि दी गयी है।</span>
आर्य शब्द श्रेष्टता का द्योतक है | और किसी की श्रेष्ठता को जांचने में
पारिवारिक पृष्ठभूमि का कोई मापदंड हो ही नहीं सकता क्योंकि किसी चिकित्सक
का बेटा केवल इसी लिए चिकित्सक नहीं कहलाया जा सकता क्योंकि उसका पिता
चिकित्सक है, वहीँ दूसरी ओर कोई अनाथ बच्चा भी यदि पढ़ जाए तो चिकित्सक हो
सकता है. ठीक इसी तरह किसी का यह कहना कि शूद्र ब्राह्मण नहीं बन सकता –
सर्वथा गलत है |<br /> इसलिए मित्रों आओ और इस जातिवाद के जंजीर को तोड़ खुद को श्रेष्ठ बनाये, खुद को आर्य बनाये।<br /> वेद में आदेश भी दिया हुआ है<br /> "कृण्वन्तो विश्वमार्यम्"<br /> अर्थात सम्पूर्ण विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाओ।</b></div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-18007921376762329212013-03-22T00:48:00.000-07:002013-03-22T00:48:48.145-07:00ईश्वर तो पागल ही होना चाहिए !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-52UF-0_oj4hWNa2U7A_l4MtzbfZGiJrvC26F5zqSyoENw-0Rk77BvyMpSyQC18C1bOPhohHb5u_8MYwMQiaKrLgHm0SLkcPKCwaNTe43032q_bJ1nIIeM47Vdh9d1m3Ttt5h50yYdE0/s1600/heavenandhell1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-52UF-0_oj4hWNa2U7A_l4MtzbfZGiJrvC26F5zqSyoENw-0Rk77BvyMpSyQC18C1bOPhohHb5u_8MYwMQiaKrLgHm0SLkcPKCwaNTe43032q_bJ1nIIeM47Vdh9d1m3Ttt5h50yYdE0/s1600/heavenandhell1.jpg" /></a></div>
<span style="font-size: small;">अनेक संप्रदायों का इस प्रकार है:</span>
<br />
<span style="font-size: small;">- इश्वर न्यायी, दयालु और परिपूर्ण है|</span><br />
<span style="font-size: small;">- यह हमारा पहेला और अंतिम जीवन है|</span><br />
<span style="font-size: small;">- इश्वर हमारी कसौटी ले रहा है|</span><br />
<span style="font-size: small;">- और इस कसौटी के परिणाम के आधार पर इश्वर हमें स्वर्ग में या तो नर्क में भेजता है|</span><br />
<br />
<span style="font-size: small;">संप्रदायों में थोड़ी सी ही भिन्नता है:</span><br />
<span style="font-size: small;">- कसौटी के प्रकार और उसका मापदंड|</span><br />
<span style="font-size: small;">- स्वर्ग और नर्क का वर्णन|</span><br />
<span style="font-size: small;">- कसौटी में खरा उतरने के लिए जरुरी जनुन या कट्टरपन की हद|</span><br />
<br />
<span style="font-size: small;">पर ये निश्चित रूप से मानते है कि, हमें एक ही जीवन मिलता है, हमारा यह
जीवन इश्वर द्वारा ली जाने वाली एक कसौटी है और इस कसौटी के परिणाम के आधार
पर इश्वर हमें हमेशा के लिए स्वर्ग में या तो नर्क में भेजता है|</span><br />
<span style="font-size: small;">अब हम तर्कपूर्ण प्रश्नों और उदाहरणों द्वारा संप्रदायों की मान्यताओं
का विश्लेषण करेंगे और देखेंगे कि यह मान्यताएं कितनी हद तक सच्ची और
विश्वसनीय है|</span><br />
<span style="font-size: small;">१. माँ के गर्भ में ही काफ़ी सारे बच्चों की मृत्यु हो जाती है| तो फ़िर
यह बच्चे मृत्यु के बाद कहा जायेंगे? स्वर्ग में या नर्क में?</span><br />
<span style="font-size: small;">इन संप्रदायों के विद्वानों का मानना है कि ये बच्चे स्वर्ग में जायेंगे
क्योंकि इन बच्चों ने अपने जीवन में कभी कोई बुरा काम नहीं किया|</span><br />
<b>पर मेरा प्रश्न यह है कि</b><b>,</b><b> क्या इन बच्चों को अपने जीवन में कोई गलत काम करने का एक भी मौक़ा मिला था</b><b>?</b><br />
<a name='more'></a><br />
<span style="font-size: small;">इस्लाम और ईसाई मत का भगवान एक उमेदवार की (वो बच्चे जीनकी मृत्यु माता
के गर्भ में हो जाती है) कसौटी लिए बिना ही स्वर्ग में भेज देता है, और
दूसरे उमेदवार की एक के बाद एक १०० वर्षों तक कसौटी करता रहेता है| तो क्या
ऐसा भगवान पक्षपाती नहीं कहा जायेगा?</span><br />
<span style="font-size: small;">२. काफ़ी सारे बच्चों की मृत्यु अपनी परिपक्वता की अवधि में पहुचने से
पहलें ही हो जाती है| और अगर मृत्यु के पहलें इन बच्चों ने थोड़े बहुत गलत
काम किए भी हो, तो वो बुरे इरादे से नहीं, पर निर्दोषता के कारण ही| तो यह
बच्चे मृत्यु के बाद कहा जायेंगे? स्वर्ग में या नर्क में?</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर ये बच्चे स्वर्ग में जाते है तो फ़िर भगवान हम सब को बचपन में ही
मार के हम सब का स्वर्ग में जाना क्यों तय नहीं करता? और अगर भगवान ऐसा
नहीं करता तो क्या वह अन्यायी और अपरिपूर्ण नहीं कहा जायेगा?</span><br />
<span style="font-size: small;">और अगर भगवान इन बच्चों को नर्क में भेजता है तो फ़िर उस में इन बच्चों की क्या गलती थी? ये बच्चे तो निर्दोष थे!</span><br />
<span style="font-size: small;">३. अब मान लो कि किसी के वहा जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया| और दोनो
बच्चों ने अपने जीवन के पहलें ३ वर्ष निर्दोषतापूर्ण बिताये| फ़िर उनमे से
एक बच्चे की मृत्यु हो जाती है| इसलिए इस्लाम और ईसाई मतानुसार यह बच्चा तो
जरुर स्वर्ग में ही जायेगा| और दूसरा बच्चा थोड़े और वर्ष निर्दोषतापूर्ण
जीवन बिता कर बाद में बुरी आदतों के कारण काफ़िर (स्व:धर्मत्यागी) बन जाता
है| और अंत में ६० वर्ष कि उम्र में उसकी मृत्यु हो जाती है| अब कुरान के
अनुसार जो काफ़िर है वह तो नर्क में ही जाते है| इसलिए ये बच्चा भी नर्क
में ही जायेंगा|</span><br />
<span style="font-size: small;">पर मेरा प्रश्न यह है कि क्या इस बच्चे के काफ़िर बनने का कारण इश्वर ही
नहीं है? क्योंकि इश्वर ने ही इस बच्चे को ६० साल की उम्र दी थी| अगर
इश्वर/अल्लाह ने इस बच्चे को भी उसके भाई कि तरह ३ वर्ष कि उम्र में ही मार
दिया होता तो यह बच्चा भी स्वर्ग में जा सकता था!</span><br />
<span style="font-size: small;">इसलिए अगर इश्वर ने सभी को एक ही जीवन दिया है और मृत्यु के बाद हम सब
को सदा के लिए स्वर्ग में या नर्क में भेजता है, तो ऐसा इश्वर अन्यायी है
यह बात यहाँ पर साबित हो जाती है|</span><br />
<span style="font-size: small;">४. अब मान लो कि किसी के वहा एक मानसिक रूप से अस्थिर बच्चे ने जन्म
लिया| और उसका मानसिक विकास केवल ५ वर्ष के बच्चे जैसा ही रहा| पर ऐसी
मानसिक स्थिति में भी वह बच्चा काफ़ी वर्षों तक जीवित रहा| तो यह बच्चा
मृत्यु के बाद कहा जायेगा? स्वर्ग में या नर्क में?</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर ये बच्चा अपनी मंदबुद्धि के कारण इश्वर की कसौटी में खरा नहीं उतरे,
और इश्वर उसे नर्क में भेजे, तो प्रश्न उठता है कि, “बच्चा इश्वर की कसौटी
में खरा उतर सके इसके लिए इश्वर ने उसे बुद्धि ही नहीं दी थी|”</span><br />
<span style="font-size: small;">और अगर इश्वर बच्चे की मंदबुद्धि को घ्यान में लेकर उसको स्वर्ग में
भेजे, तो प्रश्न उठता है कि, “इश्वर सभी बच्चों को मंदबुद्ध क्यों नहीं
पैदा करता?” ऐसा करने से सभी लोगों का स्वर्ग में जाना तय हो जाता|</span><br />
<span style="font-size: small;">इसलिए या तो इश्वर अन्यायी साबित होता है, या तो फ़िर स्वर्ग या नर्क में जाने के लिए कसौटी देनी ही पड़ती है, यह बात बिलकुल गलत है|</span><br />
<span style="font-size: small;">५. अब मान लो कि चार बच्चों ने अलग-अलग परिवारों में जन्म लिया| हिन्दू
परिवार, नास्तिक परिवार, मुस्लिम परिवार और ईसाई परिवार| इसलिए समाज,
तालीम, शिक्षा और संस्कार अनुसार यह बच्चे क्रम में कट्टर हिन्दू, नास्तिक,
मुस्लिम और ईसाई बनेंगे|</span><br />
<span style="font-size: small;">तो फ़िर से वही प्रश्न उठता है कि मृत्यु के बाद कौन कहा जायेंगा? अब
इस्लाम के अनुसार केवल कुरान और मोंहमद को मानने वाले ही स्वर्ग के अधिकारी
है| और ईसाई मत अनुसार जीसस को समर्पित होने वाले ही स्वर्ग में जायेंगे|</span><br />
<span style="font-size: small;">हिन्दू और नास्तिक परिवारों में जन्म लेने वाले बच्चे तो निश्चित रूप से
नर्क में ही जायेंगे क्योंकि वो कुरान और जीजस को नहीं मानेंगे| पर मेरा
प्रश्न यह है कि इश्वर ने सभी लोगों को ईसाई या मुस्लिम परिवारों में जन्म
क्यों कही दिया? हिन्दू और नास्तिक परिवारों में लोगों को जन्म देकर उनके
लिए नर्क के द्वार क्यों पहलें से ही खुलें छोड दिये? क्या ऐसा कर के इश्वर
ने उन लोगों के साथ अन्याय नहीं किया?</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर मेरा जन्म और पालन हिन्दू परिवार में हुआ है और मुझे कुरान और बाइबल
में विश्वास रखने का एक भी कारण नहीं मिला, तो उसमे मेरी क्या गलती है? इन
परिवारों में जन्म दे के क्यूँ ईश्वर ने मेरा नर्क में जाना पहलें से ही
तय कर दिया?</span><br />
<span style="font-size: small;">६. मान लो कि कोई व्यक्ति इस्लाम में दृढ विश्वास रखता है| और वो मानता
है कि बच्चे हमेशा स्वर्ग में जाते है क्योंकि ऐसा इस्लाम मत के विद्वानों
का कहना है| इसलिए वह व्यक्ति आत्म बलिदान का आदर्श दृष्टान्त स्थापित करने
के लिए बच्चों की ह्त्या करना शरू कर देता है| वो सोचता है कि भले ही उसे
नर्क में सदा के लिए जलना पड़े, पर वो तो इन मासूम बच्चों को स्वर्ग में
भेजने के लिए कुछ भी करेगा|</span><br />
<span style="font-size: small;">वैसे देखा जाय तो इस व्यक्ति ने तो निष्काम कर्म और समाजसेवा ही कि है|
तो फ़िर यह व्यक्ति मृत्यु के बाद कहा जायेंगा? स्वर्ग में या नर्क में?</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर वो स्वर्ग में जाता है तो ये बात साबित होती है कि अल्लाह बाल
ह्त्या को समर्थन देकर समाज के लिए गलत दृष्टान्त स्थापित करता है| और अगर
वो नर्क में जाता है तो यह बात साबित होती है कि अल्लाह निष्काम कर्म और
समाज सेवा के खिलाफ है|</span><br />
<span style="font-size: small;">ऊपर से, जब तक क़यामत का दिन नहीं आता तब तक ये तय नहीं होता कि कौन
स्वर्ग में जायेंगा और कौन नर्क में| उसका यही अर्थ निकलता है कि अल्लाह ने
बहुत सारे निश्वार्थ समाज सेवकों को बाल ह्त्या के लिए प्रेरित कर दिया
है|</span><br />
<span style="font-size: small;">७. कोई भी विषय के बारे में लोगों के ज्ञान कि निष्पक्ष कसौटी करने के लिए:</span><br />
<span style="font-size: small;">- पहलें तो हर एक व्यक्ति को वह ज्ञान कि शिक्षा एक समान तरीके से देनी चाहिए,</span><br />
<span style="font-size: small;">- और फ़िर, लोगों के ज्ञान का मूल्यांकन एक समान परिस्थिति के तहत ही होना चाहिए</span><br />
<span style="font-size: small;">ठीक इसी प्रकार, स्वर्ग या नर्क में भेजने से पहलें लोगों कि निष्पक्ष कसौटी करने के लिए:</span><br />
<span style="font-size: small;">- पहलें तो इश्वर/अल्लाह/जीजस को कुरान या बाइबल (उन दोनो में से जो भी
सही हो वह) का ज्ञान सभी लोगों के हदय में आत्मसात् करना चाहिए|</span><br />
<span style="font-size: small;">- फ़िर उन सभी लोगों को कुरान या बाइबल में मानने वाले परिवारों में ही जन्म देना चाहिए|</span><br />
<span style="font-size: small;">- और फ़िर उन सभी लोगों का पालन एक समान परिस्थितिओं के तहत होने के बाद ही उन सबके ज्ञान कि कसौटी लेनी चाहिए|</span><br />
<span style="font-size: small;">पर देखनें में आता है कि इश्वर/अल्लाह इस दुनिया में लोगों को अलग-अलग
धर्मों का पालन करने वाले परिवारों में जन्म देता है| इसलिए लोग उसी धर्म
कि मान्यताओं में पलते है और फ़िर उसी प्रकार के संस्कार ग्रहण करते है|
इसलिए सभी मनुष्यों की परिस्थितियाँ एक समान नहीं रहती| और इसलिए लोगों कि
निष्पक्ष कसौटी कर पाना संभव नहीं होता| तो फ़िर इश्वर/अल्लाह दयालु,
न्यायी और परिपूर्ण कैसे माना जायेगा?</span><br />
<span style="font-size: small;">इस प्रश्न के जवाब में इन संप्रदायों के विद्वानों का कहना है कि अल्लाह
मनुष्यों को अलग अलग परिस्थितिओं और वातावरण में जन्म देता है| और उसमे रह
कर मनुष्य जो भी अच्छे बुरे काम करता है उसके आधार पे ही अल्लाह मनुष्यों
के भाग्य का निर्णय करता है| पर ये तो ऐसी बात हुए कि जैसे इश्वर
Duckworth-Lewis फोर्मूला का (जब कोई कारण से क्रिकेट मैच बिच में ही रोक
देनी पड़ती है, तब अधूरी मैच पूरी किए बिना ही Duckworth-Lewis फोर्मूला का
उपयोग कर कौन सी टीम मैच जीती है उसका निर्णय लिया जाता है|) उपयोग करता
है|</span><br />
<span style="font-size: small;">इस बात से कुछ और सवाल खड़े होते है|</span><br />
<span style="font-size: small;">पहेला:</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर इश्वर सही अर्थ में परिपूर्ण है और उसके पास स्कोर देने का फोर्मूला
है तो फिर उसने क्यों ये सब नाटक कर इतने सारे वर्ष बरबाद किए|
ईश्वर/अल्लाह को यह फोर्मूला का प्रयोग पहेले से ही करके सबको स्वर्ग में
या नर्क में भेज देना चाहिए|</span><br />
<span style="font-size: small;">दूसरा:</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर यह फोर्मूला का प्रयोग कर ईश्वर गर्भ में ही मर जाने वाले बच्चों और
छोटे बच्चों को सीधे स्वर्ग में जगह देता है तो फ़िर अल्लाह ने दूसरे
लोगों को परेशानियाँ उठाने के लिए लंबी उम्र क्यों दी? लंबी उम्र दे कर
ईश्वर ने लोगों के साथ पक्षपात क्यों किया?</span><br />
<span style="font-size: small;">तीसरा:</span><br />
<span style="font-size: small;">इश्वर की यह कसौटी के असतत परिणाम देखने को मिलते है! कुरान के अनुसार
स्वर्ग में जाने वाले सभी लोगों को ७२ कुँवारीकाएँ मिलती है! यहाँ पर कर्म
के अनुसार मिलने वाले फल में विभिन्नता या घटबढ़ देखने को नहीं मिलती| अलग
अलग पुस्तके स्वर्ग का अलग अलग वर्णन करती है| पर उससे केवल स्वर्ग और नर्क
की संख्या में घटबढ़ होती है| पर फिर भी निरन्तर श्रेणीकरण तो कही देखने
को नहीं मिलता| यहाँ पर गणितीय सिद्धांत के विरुद्ध, कन्टिन्यूअस फंगक्शन
इक्वेश़न कोई डिस्क्रीट परिणाम देता है|</span><br />
<span style="font-size: small;">८. ऐसा माना जाता है कि स्वर्ग में लोग हमेशा युवा अवस्था में ही रहते
है| तो फ़िर क्या वो लोग अपनी इच्छा अनुसार अपना रूप भी बदल सकते है?
निर्दोष बच्चे और माँ के गर्भ में मर जाने वाले बच्चों का स्वर्ग में जाने
के बाद क्या होता है? क्या वो स्वर्ग में पहुचनें के बाद युवा हो जाते है?
क्या इन बच्चों को हिब्रू या अरबी जेसी दूसरी कोई स्वर्ग की भाषाओं की
तालीम दी जाती है? अगर हा, तो फ़िर अल्लाह ने वहीँ भाषा को इस दुनिया की एक
मात्र भाषा क्यों नहीं बनाई?</span><br />
<span style="font-size: small;">९. प्राणियों और अन्यं जिव जंतुओं का क्या? वो स्वर्ग में जाते है या
नर्क में? पहलें तो यह माना जाता था कि प्राणियों में तो आत्मा ही नहीं
होती| पर अब यह बात साबित हो चुकी है कि प्राणि भी मनुष्यों की तरह ही सुख
और दुःख की अनुभूति करते है| इसलिए यहाँ पर अब दो राय पड़ गई है|</span><br />
<span style="font-size: small;">कुछ लोगों का कहना है की सभी प्राणी स्वर्ग में जाते है, और कुछ लोगों का कहना है कि अल्लाह को सब पता है!</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर सभी प्राणि स्वर्ग में जाते है तो ईश्वर/अल्लाह ने सभी को प्राणी
योनी में जन्म क्यों नहीं दिया? अगर अल्लाह बाकियों को भी प्राणि बनाता तो
वह सभी के लिए भी स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते| ऐसा न करके अल्लाह ने उन
लोगों के साथ पक्षपात क्यूँ किया?</span><br />
<span style="font-size: small;">और अगर प्राणि नर्क में जाते है तो उसमें प्राणियों की क्या गलती है?
क्या स्वर्ग में जाने के बाद प्राणि प्राणि ही रहता हे या फ़िर वो इंसान बन
जाता है? स्वर्ग में जाने के बाद प्राणियों की बुद्धि विकसित होती है या
नहीं?</span><br />
<span style="font-size: small;">१०. इन संप्रदायों के अनुसार अगर स्वर्ग और नर्क हमेशा के लिए होते है
तो फ़िर ऊपर के मुद्दों को ध्यान में लेते हुए ईश्वर के अन्याय की कोई सीमा
नहीं रह जाती|</span><br />
<span style="font-size: small;">क्योंकि ईश्वर कुछ लोगों की कसौटी लिए बिना ही उनको सीधे स्वर्ग में जगह
दे देता है, और दूसरे लोगों की वर्षों तक कसौटी लेता रहता है| कुछ लोगों
को स्व:धर्म त्यागी के घर में पैदा करता है, तो कुछ लोगों को देवदूत के घर
में|</span><br />
<span style="font-size: small;">क्या यह सबसे बड़ी धोखेबाजी नहीं है?</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर एक ही कसौटी के परिणाम स्वरुप हमें हमेशा के लिए स्वर्ग में या नर्क
में जाना पडता हो तो फ़िर ईश्वर/अल्लाह सबसे बड़ा अन्यायी और धोखेबाज़ है|</span><br />
<span style="font-size: small;">११. दूसरा सवाल ये उठता है कि अगर स्वर्ग में जाने के बाद लोग एक दूसरे
को मारना शुरू कर दे या दूसरे अनैतिक काम करना शुरू कर दे तो क्या अल्लाह
उन लोगों को स्वर्ग में से नर्क में ट्रांसफर देगा? इन संप्रदायों की
पुस्तकें इस बात पर चुप है|</span><br />
<span style="font-size: small;">पर अगर अल्लाह उन लोगों को स्वर्ग में से नर्क में ट्रांसफर देगा तो यह
स्पष्ट हो जायेगा कि उन लोगों ने अल्लाह को मुर्ख बनाया| इन लोगों ने सिर्फ
<b>स्वर्ग में जाने के लिए ही</b> पृथ्वी पर अच्छे काम किये| एक बार
स्वर्ग में धुसने के बाद फ़िर से पापकर्म शुरू कर दिये| इसका यहीं अर्थ
निकलता है कि अल्लाह ने इन लोगों को स्वर्ग में प्रवेश दे के गलती कि| इससे
दो बातें साबित हो जाती है: एक तो “अल्लाह परिपूर्ण नहीं है|” और दूसरी,
“अल्लाह सब जानता है यह बात गलत है|”</span><br />
<span style="font-size: small;">और अगर अल्लाह इन लोगों को स्वर्ग में ही रख कर उनकी मनमानी चलने देता
है तो फ़िर स्वर्ग में और पृथ्वी में क्या अंतर रह जायेगा? इस पृथ्वी पर भी
लोग लड़ते रहते है और स्वर्ग में भी लड़ते रहेंगे| इस पृथ्वी पर भी शांति
नहीं है और स्वर्ग में भी शांति नहीं रहेंगी| इसलिए स्वर्ग एक निरर्थक
स्थान के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह जायेगा| पर अल्लाह तो कभी कुछ निरर्थक
बनाता ही नहीं है! इससे यह बात साबित हो जाती है कि अल्लाह परिपूर्ण नहीं
है| और फ़िर भी अगर अल्लाह पृथ्वी के मनुष्यों को उनके अच्छे कर्मो के फल
स्वरुप स्वर्ग में ही भेजता है, तो फ़िर ये तो इन अच्छे लोगों के साथ
अन्याय होगा| इस कारण से भी अल्लह अन्यायी और अपरिपूर्ण साबित होता है|</span><br />
<span style="font-size: small;">१२. सुनने में आया है कि २ महीने की बच्ची पर बलात्कार किया गया| तो
फ़िर यहाँ किसकी कसौटी हो रही है? बच्ची की या फ़िर बलात्कारी की?</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर बच्ची की कसौटी हो रही है तो क्या यह बच्ची अपना बचाव करने के लिए सक्षम थी?</span><br />
<span style="font-size: small;">और अगर बलात्कारी की कसौटी हो रही है तो अल्लाह ने इतनी छोटी बच्ची को
ही बलात्कार का शिकार क्यों बनाया? इस में इस बच्ची की क्या गलती थी?</span><br />
<span style="font-size: small;">इसलिए अगर स्वर्ग और नर्क की बातें सच है तो ईश्वर मुर्ख, पागल और मनोरोगी तानाशाह साबित होता है|</span><br />
<span style="font-size: small;">१३. पूर्व के देशो में तत्त्व-ज्ञान पर लिखी गई लगभग सभी पुस्तकें एक ही
जन्म में नहीं मानती| उनके अनुसार जीवन हमेशा चलने वाला एक ऐसा चक्र है
जिसे मृत्यु भी नहीं रोक सकती| दूसरे शब्दों में कहे तो वे सभी कर्म के
सिद्धांत में मानती है|</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर यह बात सच नहीं है तो फिर इश्वर/अल्लाह ने कुछ लोगों को पूर्व के देशो में जन्म दे कर उनको दुविधा में क्यों डाल दिया?</span><br />
<span style="font-size: small;">बाइबल और कुरान के अनुसार इश्वर ने पूर्वकाल में बहुत सारे चमत्कार किये
है| जैसे कि पुरे शहर को जला देना, जीजस जैसे देवदूत को बिना पिता के ही
पैदा कर देना| अगर इन संप्रदायों का इश्वर ऐसे चमत्कार कर सकता है तो फिर
उसने पूर्व देशो में तत्त्व-ज्ञान पर लिखी गई सभी पुस्तकों को जला क्यों
नहीं दिया| क्योंकि उसने ही तो तय किया था कि जो जीजस या मोंहमद को मानने
का इनकार करेगा उसे नर्क में ही जाना पडेंगा| आदर्शतः इश्वर को एसी
पुस्तकों के सर्जन पर पहले से कि रोक लगा देनी चाहिए थी!</span><br />
<span style="font-size: small;">१४. मुस्लिम ग्रंथो के अनुसार मोंहमद ने कह दिया है की उसने स्वर्ग को
पुरुषों से भरा हुआ और नर्क को स्त्रियों से भरा हुआ देखा है! इसका अर्थ यह
निकलता है कि स्वर्ग पहले से ही पुरुषों के लिए आरक्षित है! अगर ऐसा है तो
इश्वर/अलाह अस्थिर मन वाला तानाशाह नहीं कहा जायेगा? (Refer KITAB
AL-RIQAQ, Chapter 1, Sahih Bukhari Book 36, Number 6596, Book 36, Number
6597, Book 36, Number 6600)</span><br />
<span style="font-size: small;">स्वर्ग में सभी को ७२ कुँवारीकाएँ मिलती होने के कारण शायद समलैंगिक स्त्रियाँ ही स्वर्ग में जा सकती होगी!</span><br />
<span style="font-size: small;">१५, इस्लाम के अनुसार स्वर्ग में जाने वाले हर एक पुरुष को चार
निष्ठावान पत्नियाँ मिलती है| पर मोंहमद के दावे के अनुसार अगर स्वर्ग केवल
पुरुषों से ही भरा पड़ा है तो क्या स्वर्ग एक समलिंगकामुक पुरुषों कि
जन्नत नहीं कहा जायेगा? क्योंकि स्वर्ग में अधिकांश पुरुष होने के कारण
गणित के अनुसार हर एक पुरुष को चार पत्नियाँ मिलना संभव नहीं| और अगर
स्वर्ग में समलैंगिकता ही एक मात्र रास्ता है तो फिर पृथ्वी पर उसका इतना
विरोध क्यों?</span><br />
<span style="font-size: small;">१६. जहाद के नाम पर आतंकवादी बनने के लिए जिन लोगों का बचपन में ही मत
परिवर्तन(brainwash) किया जाता है उन लोगों का क्या? मुंबई के आतंकवादी
हमले के लिए जिम्मेदार कासब मर ने के बाद कहा जायेंगा? स्वर्ग में याँ नर्क
में? कासब जैसे लोगों का मत परिवर्तन अल्लाह के नाम पर ही शस्त्र उठाने के
लिए कट्टरवादि द्वारा किया जाता है!</span><br />
<span style="font-size: small;">१७. अगर सही में एक ही जीवन है तो इश्वर ने मानवजाति को दिये हुवे अपने मूल संदेश को लेकर इतनी दुविधाएं पैदा क्यों कि?</span><br />
<span style="font-size: small;">आज बाइबल की मूल आवृत्ति अस्तित्व में नहीं है! कुरान का संकलन भी
मोंहमद की मृत्यु के बाद हुआ था! और जिन लोगों ने कुरान का संकलन किया था
वो सभी एक दूसरे की जान के दुश्मन थे| मानवजाति को अल्लाह के मूल संदेश
देने की क्षमता एसे खून के प्यासे लोगों में कैसे हो सकती है? इसके उपरांत,
ऐसा माना जाता है कि मोंहमद पर सैतान के प्रभाव के कारण कुरान में कुछ
अनुवाक्यों बाद में डाले गये थे!</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर इश्वर/अल्लाह सही में न्यायी है और हम सब को मात्र एक ही जीवन देता
है, तो फिर उसने ऐसी दुविधाएं क्यों पैदा की जिसे कोई भी मनुष्य सुलजा न
सके? और फिर उसके मापदंड के अनुसार अगर हम इस दुविधाओं में से बहार नहीं आ
पाते तो हमारा नर्क में जाना पक्का! यह सब करके भी इश्वर संतुष्ट नहीं हुआ,
और उसने कुछ लोगों को अपने संदेश से हमेशा के लिए दूर रहने का दोष लगाया!</span><br />
<span style="font-size: small;">१८. इस्लाम और ईसाई संप्रदायों के अनुसार अगर कोई व्यक्ति उनके मत का
स्वीकार करेंगा तो उनका ईश्वर उस व्यक्ति के सभी पापों को माफ़ कर देंगा|
इसका अर्थ यही हुवा कि भले आपने अपने जीवन में कुछ भी किया हो, पर अंत में
अगर आप इन संप्रदायों के ईश्वर के सामने माफ़ी मांग कर, इनके मतों का
स्वीकार करेंगे, तो आपके लिए स्वर्ग के द्वार खोल दिए जायेंगे| पर भले आपने
इन मतों का आजीवन पूरी श्रद्धा के साथ पालन किया पर अगर <b>अंत में आप को सत्य का ज्ञान हुआ </b>और आपने इन संप्रदायों के ईश्वर में मानने का इनकार किया, तो फ़िर आपको नर्क में धकेला जायेंगा|</span><br />
<span style="font-size: small;">इस बात से कुछ और शंकाएँ पैदा होती है|</span><br />
<span style="font-size: small;">पहली:</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर ऐसा है तो क्या जीवन और इस जीवन के सभी आयामों और उसकी विविधताएं
व्यर्थ नहीं बन जायेगी? हमारा पूरा जीवन, जीवन सफल बनाने के लिए किये गए
सभी प्रयास, हमारा ज्ञान और ज्ञान को पाने के लिए किया गया अभ्यास, ये सब
व्यर्थ हो जायेगा, और अंत में रह जायेगी तो बस हमारी आखरी हाँ या ना| क्या
ऐसा करना कुदरत के विरुद्ध नहीं?</span><br />
<span style="font-size: small;">हम सभी जानते है कि गुस्सा करना बुरी बात है, पर फिर भी कभी कभी हमारी
अज्ञानता और स्वभाव के कारण हमें गुस्सा आ जाता है| ऐसी भूल होना स्वाभाविक
है|</span><br />
<span style="font-size: small;">ठीक उसी तरह, अगर कोई व्यक्ति जीवन भर अल्लाह को मानता रहा हो, पर अपने
जीवन के अंतिम दिनों में उलजन में आ कर स्वधर्म त्यागी बनाता है तो फिर
उसको नर्क में भेजने जैसी कठोर सजा क्यों मिलती है?</span><br />
<span style="font-size: small;">और अगर कोई व्यक्ति जीवन भर स्वधर्म त्यागी रहा हो, पर अंत समय में इन
धर्म संप्रदायों के इश्वर का स्वीकार करता है, तो उसके बुरे कामो को ध्यान
में न लेते हुए उसे स्वर्ग में क्यों भेजा जाता है?</span><br />
<span style="font-size: small;">हर एक निर्णय में थोड़ी बहुत उलजन तो रहती है| सही निर्णय लेना तभी संभव
के जब हमें सब कुछ पता हो और हम सभी वस्तुओं का विश्लेषण कर सके| पर
मनुष्य के लिए सब कुछ जान पाना संभव नहीं| इसलिए मनुष्यों द्वारा लिया गया
कोई भी निर्णय अंतिम या विश्वसनीय नहीं हो सकता|</span><br />
<span style="font-size: small;">इसलिए अगर कोई बाइबल/कुरान में मानता हो के न मानता हो, पर उसके निर्णय के मूल में तो उलजन और मर्यादित ज्ञान ही होगा|</span><br />
<span style="font-size: small;">और अगर एसी अज्ञानता के कारण लिए गये निर्णय के आधार पर इश्वर व्यक्ति
को हमेशा के लिए नर्क में भेज देता है, तो क्या यह इश्वर पागल नहीं माना
जायेगा?</span><br />
<span style="font-size: small;">इश्वर ने मनुष्यों की कसौटी करके उसका भाग्य हमेंशा के लिए निश्चित करने
के लिए यह कैसी दोषपूर्ण व्यवस्था बनाई है जो लोगों की अज्ञानता पर निर्भर
है? क्या यह इश्वर पागल नहीं माना जायेगा?</span><br />
<span style="font-size: small;">दूसरी:</span><br />
<span style="font-size: small;">क्या इश्वर की यह दोषपूर्ण व्यवस्था मनुष्यों को जीवन भर निरर्थक काम
करते रहने कि और अंत में माफ़ी मांग कर स्वर्ग में जगह पा लेने कि प्रेरणा
नहीं देती?</span><br />
<span style="font-size: small;">इसी कारण से हम देखतें है कि बुढापा आते ही लोग माफ़ी मांग कर स्वर्ग
में जाने के लिए “संत” बन बेठते है| और कुछ “होशियार” लोग पहले जीवन भर
निरर्थक काम करते है और फिर अपने पापों को कबूल कर, माफ़ी मांग, स्वर्ग में
जाने कि कोशिश करते है|</span><br />
<span style="font-size: small;">तीसरी:</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर यह सच है तो फिर कुदरत इश्वर की यह व्यवस्था के विरुद्ध काम क्यों
करती है? क्या जब इश्वर परिपूर्ण नहीं था तब उसने कुदरत की रचना की थी? या
फिर इश्वर ने सैतान के साथ मिलकर कुदरत की रचना कि है?</span><br />
<span style="font-size: small;">क्योंकि अगर आप कुदरत के नियमों के विरुद्ध काम करते हो तो आपको उसकी कीमत चुकानी पड़ती है!</span><br />
<span style="font-size: small;">अगर ज्यादा चीनी खाने से आपको मधुमेह हो गया है तो मधुमेह रोग का इलाज
सिर्फ माफ़ी मांग कर नहीं हो जाता| मधुमेह के इलाज के लिए आप को पूरी
चिकित्सा पद्धति से गुजरना पडता है| सिर्फ माफ़ी मांग लेने से हम रोग मुक्त
नहीं हो जाते! माफ़ी मांग लेने से हमें हमारे टूटे हुए दांत वापस नहीं मिल
जाते! माफ़ी मांग लेने से हमें शक्ति प्रदान नहीं होती| माफ़ी मांग लेने
से हम विद्वान नहीं बन जाते, और माफ़ी मांग लेने से ना ही हम किसी काम में
कुशलता प्राप्त कर सकते है! तो फिर माफ़ी मांग लेने से हम स्वर्ग में कैसे
जा सकते है?</span><br />
<span style="font-size: small;">पर इसके विपरीत, कुदरत में सब कुछ अपरिवर्तनशील नियमों अनुसार अविरत
चलता रहता है| उसमे से भाग छुटने का कोई मार्ग नहीं! तो फिर इश्वर अचानक
यहाँ पर क्यों कुदरत के नियमों के विरुद्ध काम कर लोगों को स्वर्ग में या
नर्क में भेजता है?</span><br />
<span style="font-size: small;">१९. अगर ईश्वर/अल्लाह सही में न्यायी और दयालु है तो, वह हमें हमेशा के
लिए स्वर्ग या नर्क में भेजने के लिए एसी वस्तुओ में विश्वास करने को क्यों
कहता है, जिसको हम कभी देख या सुन नहीं सकते, और जिसका हम कभी विश्लेषण या
अनुभव नहीं कर सकते?</span><br />
<span style="font-size: small;">बाइबल और कुरान में जिस ईश्वर का वर्णन किया गया है उसको हम कभी देखतें
नहीं, ना ही उसके द्वारा किये जाने वाले चमत्कारों को देखतें है| हम ना ही
ईश्वर के कोई एजंट, प्रतिनिघि या पैगम्बर को देखतें है, और ना ही किसी
बच्चे को बिना पिता के जन्म लेते हुवे देखतें है| ना ही हम कभी इडन के बाग
को ढूँढ़ सके और ना ही हम कभी चौथे या सातवे आसमान को ढूँढ़ सके| और ना ही
हमें कभी स्वर्ग या नर्क की ज़लक देखने को मिली|</span><br />
<span style="font-size: small;">पर फ़िर भी स्वर्ग में जाने के लिए आपको ये सभी बातों को मानना ही पडेंगा, नहीं तो आपका नर्क में जाना पक्का!</span><br />
<span style="font-size: small;">२०. इन संप्रदायों के अनुसार मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार मरने के बाद
या तो नर्क में हमेशा के लिए जलता रहेंगा, या तो फिर स्वर्ग में जा कर ७२
कुँवारीकाएँ के साथ मजे लुटेगा|</span><br />
<span style="font-size: small;">पर मेरा प्रश्न यह है की नर्क में मनुष्य को जलने की पीड़ा की अनुभूति
कैसे होती है? स्वर्ग में मनुष्य ७२ कुँवारीयों के साथ मजे कैसे लुटता है?
ये दोनों बातें होने के लिए मनुष्य शरीर और इन्द्रियों की आवश्यकता होती
है|</span><br />
<span style="font-size: small;">पर हम तो देखतें है की जब कोई मुसलमान या ईसाई की मृत्यु हो जाती है तो
उसके शरीर को इसी पृथ्वी में दफनाया जाता है| इसलिए ये तो पक्की बात है की
मरे हुए आदमी का यह शरीर स्वर्ग में या नर्क में नहीं जाता| इस बात से यह
साबित होता है कि स्वर्ग में ७२ कुँवारीकाओं के साथ मजे लुटने के लिए या
किर नर्क में जलने के लिए अल्लाह मनुष्य को दूसरा शरीर देता है| और अगर
अल्लाह यह नहीं करता तो स्वर्ग या नर्क का कोई अर्थ नहीं रह जाता| इसलिए
सही में स्वर्ग और नर्क है यह बात साबित करने के लिए भी अल्लाह को मनुष्यों
को दूसरा शरीर(पुन:जन्म) देना पडता है| और अगर अल्लाह यह नहीं करता तो
फ़िर से अल्लाह अपरिपूर्ण सिद्ध हो जाता है|</span><br />
<span style="font-size: small;">इसलिए स्वर्ग और नर्क में मानना पर पुन:जन्म में न मानना ये तो एसी बात
हुई की आप दिन के उजाले में मानते हो पर सूरज में मानने से इनकार करते हो|
इसलिए यदि स्वर्ग और नर्क में पुन:जन्म होता हो तो फ़िर इस पृथ्वी पर भी
पुन:जन्म होता है इस बात का विरोध क्यों?</span><br />
<span style="font-size: small;">एसी अस्पष्टताओं और दुविधाओं होने के बाद भी, ईश्वरने हमें सच और झूठ को
अच्छी तरह समज कर निर्णय लेने के लिए बुद्धि भी दी है| और दुनिया में हम
ऐसे ही बुद्धिजीवियों को बहुत सन्मान देते है|</span><br />
<span style="font-size: small;">पर मुझे लगता है कि ऐसे इश्वर के राज में तो विवेक बुद्धि होना और उसका उपयोग करना बहुत ही बड़ा पाप है|</span><br />
<span style="font-size: small;">इसलिए केवल अज्ञानता रूपी अंधकार में रहनें वाले ही स्वर्ग में जायेंगे, और विवेक बुद्धि और तर्क का उपयोग करने वाले सभी नर्क में!</span><br />
<span style="font-size: small;">निश्चित ही, इश्वर कि यह दुनिया तो बहुत ही अस्पष्ट और दुविधापूर्ण है|</span><br />
<span style="font-size: small;">इसलिए मुझे लगता है कि इश्वर/अल्लाह तो पागल ही होना चाहिए!</span><br />
<br />
http://agniveer.com/god-testing-hi/ </div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-55083542470769362102012-09-16T22:49:00.000-07:002015-10-10T06:48:19.725-07:00सनातन धर्म में सनातन क्या है ? <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: small;"><span style="color: red;"><span style="color: #b45f06;"></span></span><b style="color: #b45f06;">||</b><b style="color: #b45f06;"> ओ३म् </b><b style="color: #b45f06;">||</b></span></div>
<span style="font-size: small;"></span><span style="font-size: small;"><b style="color: black; font-weight: bold; text-decoration: underline;"></b></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjwfqu3Obyl70OhGwXqdtdt_ssuTi2Py1I1tNT76gcBU6nutB8E70bRVKelw6Hht_Z0POV8CbhztI85A6xvoKIbhxxj8x6kUAzfijPhIC56V5DLJ0mB-F8f4KGOldQBZEHe_ayYXUMpMzU/s1600/sanatana-dharma.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjwfqu3Obyl70OhGwXqdtdt_ssuTi2Py1I1tNT76gcBU6nutB8E70bRVKelw6Hht_Z0POV8CbhztI85A6xvoKIbhxxj8x6kUAzfijPhIC56V5DLJ0mB-F8f4KGOldQBZEHe_ayYXUMpMzU/s1600/sanatana-dharma.jpg" /></a></div>
<span style="font-size: small;"><b style="color: black; font-weight: bold; text-decoration: underline;">सनातन धर्म में सनातन क्या है </b> </span><span style="font-size: small;"><b style="color: black; font-weight: bold; text-decoration: underline;">?</b><br />हम आज बहुत गर्व से राम-कथा में अथवा भागवत-कथा में, कथा के अंत में कहते हैं ,<br /> बोलिए --- सत्य सनातन धर्म कि जय । <br /><br /><b style="color: black; text-decoration: underline;">तनिक विचारें </b> </span><span style="font-size: small;"><b style="color: black; text-decoration: underline;">? </b><b style="color: black; text-decoration: underline;">सनातन का क्या अर्थ है </b><b style="color: black; text-decoration: underline;">?</b><br />
सनातन अर्थात जो सदा से है, जो सदा रहेगा, जिसका अंत नहीं है और जिसका
कोई आरंभ नहीं है वही सनातन है। और सत्य में केवल हमारा धर्म ही सनातन है,
यीशु से पहले ईसाई मत नहीं था, मुहम्मद से पहले इस्लाम मत नहीं था। केवल
सनातन धर्मं ही सदा से है, सृष्टि के आरंभ से । </span><br />
<a name='more'></a><span style="font-size: small;"><br /><b style="color: black; text-decoration: underline;">किन्तु ऐसा क्या है हिंदू धर्मं में जो सदा से है </b> </span><span style="font-size: small;"><b style="color: black; text-decoration: underline;">?</b><br />श्री कृष्ण की भागवत कथा श्री कृष्ण के जन्म से पहले नहीं थी अर्थात कृष्ण भक्ति सनातन नहीं है । <br /> श्री राम की रामायण तथा रामचरितमानस भी श्री राम जन्म से पहले नहीं थी अर्थात श्री राम भक्ति भी सनातन नहीं है । <br />
श्री लक्ष्मी भी, (यदि प्रचलित सत्य-असत्य कथाओ के अनुसार भी सोचें तो),
तो समुद्र मंथन से पहले नहीं थी अर्थात लक्ष्मी पूजन भी सनातन नहीं है । <br /> गणेश जन्म से पूर्व गणेश का कोई अस्तित्व नहीं था, तो गणपति पूजन भी सनातन नहीं है । <br /> <b>शिव पुराण के अनुसार</b> शिव ने विष्णु व ब्रह्मा को बनाया तो विष्णु भक्ति व ब्रह्मा भक्ति सनातन नहीं हैं। <br /><b>विष्णु पुराण के अनुसार</b> विष्णु ने शिव और ब्रह्मा को बनाया तो शिव भक्ति और ब्रह्मा भक्ति सनातन नहीं। <br /><b>ब्रह्म पुराण के अनुसार</b> </span><span style="font-size: small;"> ब्रह्मा ने विष्णु और शिव को बनाया तो विष्णु भक्ति और शिव भक्ति सनातन नहीं । <br /><b>देवी पुराण</b> </span><span style="font-size: small;"><b> </b>के अनुसार देवी ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव को बनाया तो यहाँ से तीनो की भक्ति सनातन नहीं रही । <br /> <br /><b><i>यहाँ तनिक विचारें ये सभी ग्रन्थ एक दूसरे से बिलकुल उल्टी बात कर रहे हैं</i></b><b><i>, </i></b><b><i>तो इनमें से अधिक</i></b><b><i> </i></b><b><i>से अधिक</i></b><b><i> </i></b><b><i>एक ही सत्य हो सकता है बाकि झूठ</i></b><b><i>, </i></b><b><i>लेकिन फिर भी सब हिंदू इन चारो ग्रंथो को सही मानते हैं </i></b><b><i>,</i></b><br /><b><i>अहो! दुर्भाग्य !!</i></b> </span><span style="font-size: small;"><br /><br /><b style="color: black; text-decoration: underline;">फिर ऐसा सनातन क्या है </b> </span><span style="font-size: small;"><b style="color: black; text-decoration: underline;">? </b><b style="color: black; text-decoration: underline;">जिसका हम जयघोष करते हैं</b><b style="color: black; text-decoration: underline;">?</b><br />वो सत्य सनातन है परमात्मा की वाणी । <br /> आप किसी मुस्लमान से पूछिए, परमात्मा ने ज्ञान कहाँ दिया है ? वो कहेगा कुरान में।<br />आप किसी ईसाई से पूछिए परमात्मा ने ज्ञान कहाँ दिया है ? वो कहेगा बाईबल में । <br /><b style="color: black;"><i>लेकिन आप हिंदू से पूछिए परमात्मा ने मनुष्य को ज्ञान कहाँ दिया है </i></b><b style="color: black;"><i>?</i></b><br />हिंदू निरुतर हो जाएगा । <br /> <br /><b style="color: black; text-decoration: underline;">आज दिग्भ्रमित हिंदू ये भी नहीं बता सकता कि परमात्मा ने ज्ञान कहाँ दिया है </b><b style="color: black; text-decoration: underline;">?</b><br />
आधे से अधिक हिंदू तो केवल हनुमान चालीसा में ही दम तोड़ देते हैं | जो
कुछ धार्मिक होते हैं वो गीता का नाम ले देंगे, किन्तु भूल जाते हैं कि
गीता तो योगीश्वर श्री कृष्ण देकर गए हैं परमात्मा का ज्ञान तो उस से पहले
भी होगा या नहीं ? अर्थात वो ज्ञान जो श्री कृष्ण संदीपनी मुनि के आश्रम
में पढ़े थे। <br /> जो कुछ अधिक ज्ञानी होंगे वो उपनिषद कह देंगे, परंतु उपनिषद तो ऋषियों की वाणी है न कि परमात्मा की । <br /><br /><b style="color: black; text-decoration: underline;">तो परमात्मा का ज्ञान कहाँ है </b> </span><span style="font-size: small;"><b style="color: black; text-decoration: underline;">?</b><br /> वेद !! जो स्वयं परमात्मा की वाणी है, उसका अधिकांश हिंदुओं को केवल नाम ही पता है ।<br />
वेद, परमात्मा ने मनुष्यों को सृष्टि के प्रारंभ में दिए। जैसे कहा जाता
है कि "गुरु बिना ज्ञान नहीं", तो संसार का आदि गुरु कौन था? वो परमात्मा
ही था | उस परमपिता परमात्मा ने ही सब मनुष्यों के कल्याण के लिए वेदों का
प्रकाश, सृष्टि के आरंभ में किया। <br /> <br />जैसे जब हम नया
मोबाइल लाते हैं तो साथ में एक गाइड मिलती है , कि इसे यहाँ पर रखें , इस
प्रकार से वरतें , अमुक स्थान पर न ले जायें, अमुक चीज़ के साथ न रखें,
आदि ...। <br /> उसी प्रकार जब उस परमपिता ने हमें ये मानव तन दिए, तथा ये संपूर्ण सृष्टि हमे रच कर दी, <br />तब क्या उसने हमे यूं ही बिना किसी ज्ञान व बिना किसी निर्देशों के भटकने को छोड़ दिया ?<br />
जी नहीं, उसने हमे साथ में एक गाइड दी, कि इस सृष्टि को कैसे वर्तें, क्या
करें, ये तन से क्या करें, इसे कहाँ लेकर जायें, मन से क्या विचारें,
नेत्रों से क्या देखें, कानो से क्या सुनें, हाथो से क्या करें आदि। उसी
का नाम वेद है। वेद का अर्थ है ज्ञान ।<br /> परमात्मा के उस ज्ञान को आज हमने लगभग भुला दिया है |<br /><br /><b style="color: black; text-decoration: underline;">वेदों में क्या है </b> </span><span style="font-size: small;"><b style="color: black; text-decoration: underline;">?</b><br />वेदों
में कोई कथा कहानी नहीं है। न तो कृष्ण की न राम की, वेद में तिनके से
लेकर परमेश्वर पर्यंत वह सम्पूर्ण मूल ज्ञान विद्यमान है, जो मनुष्यों को
जीवन में आवश्यक है । <br /> मैं कौन हूँ ? मुझमें ऐसा क्या है जिसमे “मैं” की भावना है ?<br /> मेरे हाथ, मेरे पैर, मेरा सिर, मेरा शरीर, पर मैं कौन हूँ ?<br /> मैं कहाँ से आया हूँ ? मेरा तन तो यहीं रहेगा, तो मैं कहाँ जाऊंगा, परमात्मा क्या करता है ?<br /> मैं यहाँ क्या करूँ ? मेरा लक्ष्य क्या है ? मुझे यहाँ क्यूँ भेजा गया ?<br />
इन सबका उत्तर तो केवल वेदों में ही मिलेगा | रामायण व भागवत व महाभारत
आदि तो ऐतिहासिक घटनाएं है, जिनसे हमे सीख लेनी चाहिए और इन जैसे
महापुरुषों के दिखाए सन्मार्ग पर चलना चाहिए । लेकिन उनको ही सब कुछ मान
लेना, और जो स्वयं परमात्मा का ज्ञान है उसकी अवहेलना कर देना केवल मूर्खता
है ।</span><span style="color: black; font-size: small;"><span style="font-weight: bold;"> </span></span><br />
<span style="color: black; font-size: small;"><span style="font-weight: bold;">तो आइये वेदो की वोर चलें और खूब समझे अपने सनातन धर्म और ईश्वर को । </span></span></div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-54624211619464953302012-09-14T08:05:00.000-07:002012-10-07T05:59:56.305-07:00आर्य समाज का राष्ट्र को योगदान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: black; font-size: small;"><b> ||</b><b> ओ३म् </b><b>||</b></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfx75amZf25PgHonkrWwmNYQwrKHq9QLmnpPIIfavPHbkEm_7ACZrNqDaMfxz9gjBv-_ySSwdFk6tkUzdyeLQHN-YFBGT5i3EGtn3BL7WKwRobIKFllm78x8yx4_dIM-FdF0yasFhOWbI/s1600/240px-Aum-_The_Symbol_of_Arya_Samaj.40114407_std.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfx75amZf25PgHonkrWwmNYQwrKHq9QLmnpPIIfavPHbkEm_7ACZrNqDaMfxz9gjBv-_ySSwdFk6tkUzdyeLQHN-YFBGT5i3EGtn3BL7WKwRobIKFllm78x8yx4_dIM-FdF0yasFhOWbI/s1600/240px-Aum-_The_Symbol_of_Arya_Samaj.40114407_std.jpg" /></a></div>
<span style="color: black; font-size: small;"><br />संसार
में आर्य समाज एकमात्र ऐसा संगठन है जिसके द्वारा धर्म, समाज, और राष्ट्र
तीनों के लिए अभूतपूर्व कार्य किए गए हैं, इनमे से कुछ इस प्रकार है –<br /><br /><b>वेदों से परिचय</b>
– वेदों के संबंध में यह कहा जाता था कि वेद तो लुत्प हो गए, पाताल में
चले गए। किन्तु महर्षि दयानन्द के प्रयास से पुनः वेदों का परिचय समाज को
हुआ और आर्य समाज ने उसे देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी पहुँचाने का
कार्य किया। आज अनेक देशों में वेदो ऋचाएँ गूंज रही हैं, हजारों विद्वान
आर्य समाज के माध्यम से विदेश गए और वे प्रचार कार्य कर रहे हैं। आर्य समाज
कि यह समाज को अपने आप में एक बहुत बड़ी दें है।<br /><br /><b>सबको </b><b>पढ़ने का अधिकार</b>
- वेद के संबंध में एक और प्रतिबंध था। वेद स्त्री और शूद्र को पढ़ने,
सुनने का अधिकार नहीं था। किन्तु आज आर्य समाज के प्रयास से हजारों महिलाओं
ने वेद पढ़कर ज्ञान प्रपट किया और वे वेद कि विद्वान हैं। इसी प्रकार आज
बिना किसी जाति भेद के कोई भी वेद पढ़ और सुन सकता है। यह आर्य समाज का ही
देंन है।</span><br />
<a name='more'></a><span style="color: black; font-size: small;"><br /><b>जातिवाद का अन्त</b>
– आर्य समाज जन्म से जाति को नहीं मानता। समस्त मानव एक ही जाति के हैं।
गुण कर्म के अनुसार वर्ण व्यवस्था को आर्य समाज मानता है। इसीलिए निम्न
परिवारों में जन्म लेने वाले अनेक व्यक्ति भी आज गुरुकुलों में अध्यन कर
रहे हैं। अनेक व्यक्ति शिक्षा के पश्चात आचार्य शास्त्री, पण्डित बनकर
प्रचार कर रहे हैं।<br /><br /><b>स्त्री </b><b>शिक्षा </b> -
स्त्री को शिक्षा का अधिकार नहीं है, ऐसी मान्यता प्रचलित थी। महर्षि
दयानन्द ने इसका खण्डन किया और सबसे पहला कन्या विद्यालय आर्य समाज की ओर
से प्रारम्भ किया गया। आज अनेक कन्या गुरुकुल आर्य समाज के द्वारा संचालित
किए जा रहे हैं।<br /><br /><b>विधवा </b><b>विवाह</b>
– महर्षि दयानन्द के पूर्व विधवा समाज के लिए एक अपशगून समझी जाति थी।
सतीप्रथा इसी का एक कारण था। आर्य समाज ने इस कुरीति का विरोध किया तथा
विधवा विवाह को मान्यता दिलवाने का प्रयास किया।<br /><br /><b>छु</b><b>आछूत का विरोध</b>
– आर्य समाज ने सबसे पहले जातिगत ऊँचनीच के भेदभाव को तोड़ने की पहल की।
इस आधार पर बाद में कानून बनाया गया। अछूतोद्धार के सम्बन्ध में आर्य
सन्यासी स्वामी श्रद्धानन्द ने अमृतसर काँग्रेस अधिवेशन में सबसे पहले यह
प्रस्ताव रखा था जो पारित हुआ था।<br /><br /><b>देश </b><b>की स्वतन्त्रता में योगदान</b>
– परतंत्र भारत को आजाद कराने में महर्षि दयानन्द को प्रथम पुरोधा कहा
गया। सन् 1857 के समय से ही महर्षि ने अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध जनजागरण
प्रारम्भ कर दिया था। सन् 1870 में लाहौर में विदेशी कपड़ो की होली जलाई।
स्टाम्प ड्यूटी व नमक के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ा परिणाम स्वरूप आर्यसमाज के
अनेक कार्यकर्ता व नेता स्वतन्त्रता संग्राम में देश को आजाद करवाने के
लिए कूद पड़े।<br /><br />स्वतन्त्रता
आंदोलनकारियों के सर्वेक्षण के अनुसार स्वतन्त्रता के लिए 80 प्रतिशत
व्यक्ति आर्यसमाज के माध्यम से आए थे। इसी बात को काँग्रेस के इतिहासकार
डॉ॰ पट्टाभि सीतारमैया ने भी लिखी है। लाला लाजपतराय, पं॰ रामप्रसाद
बिस्मिल, शहीदे आजम भगत सिंह, श्यामजी कृष्ण वर्मा, मदनलाल ढींगरा, वीर
सावरकर, महात्मा गांधी के राजनैतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले आदि बहुत से नाम
हैं।<br /><br /><b>गुरुकुल</b>
– सनातन धर्म की शिक्षा व संस्कृति के ज्ञान केंद्र गुरुकुल थे, प्रायः
गुरुकुल परम्परा लुप्त हो चुकी थी। आर्य समाज ने पुनः उसे प्रारम्भ किया।
आज सैकड़ों गुरुकुल देश व विदेश में हैं।<br /><br /><b>गौरक्षा </b><b>अभियान</b>
– ब्रिटिश सरकार के समय में ही महर्षि दयानन्द ने गाय को राष्ट्रिय पशु
घोषित करने व गोवध पर पाबन्दी लगाने का प्रयास प्रारम्भ कर दिया था। गौ
करुणा निधि नामक पुस्तक लिखकर गौवंश के महत्व को बताया और गाय के अनेक
लाभों को दर्शाया। महर्षि दयानन्द गौरक्षा को एक अत्यंत उपयोगी और राष्ट्र
के लिए लाभदायक पशु मानकर उसकी रक्षा का सन्देश दिया। ब्रिटिश राज के उच्च
अधिकारियों से चर्चा की, 3 करोड़ व्यक्तियों के हस्ताक्षर गौवध के विरोध
में करवाने का का कार्य प्रारम्भ किया,। गौ हत्या के विरोध में कई आन्दोलन
आर्य समाज ने किए। आज गौ रक्षा हेतु लाखो गायों का पालन आर्य समाज द्वारा
संचालित गौशालाओं में हो रहा है।<br /><br /><b>हिन्दी को प्रोत्साहन</b>
– महर्षि दयानन्द सरस्वती ने राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने के लिए एक
भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए सर्वप्रथम प्रयास किया।
उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है अहिन्दी भाषी प्रदेशों या विदेशों में जहाँ-जहाँ
आर्य समाज हैं वहाँ हिन्दी का प्रचार है।<br /><br /><b>यज्ञ</b>
– सनातन धर्म में यज्ञ को बहुत महत्व दिया है। जीतने शुभ कर्म होते हैं
उनमे यज्ञ अवश्य किया जाता है। यज्ञ शुद्ध पवित्र सामाग्री व वेद के
मन्त्र बोलकर करने का विधान है। किन्तु यज्ञ का स्वरूप बिगाड़ दिया गया
था। यज्ञ में हिंसा हो रही थी। बलि दी जाने लगी थी।<br /><br />वेद
मंत्रो के स्थान पर दोहे और श्लोकों से यज्ञ किया जाता था। यज्ञ का महत्व
भूल चुके थे। ऐसी स्थिति में यज्ञ के सनातन स्वरूप को पुनः आर्य समाज ने
स्थापित किया, जन-जन तक उसका प्रचार किया और लाखों व्यक्ति नित्य हवन
करने लगे। प्रत्येक आर्य समाज में जिनकी हजारों में संख्या है, सभी में
यज्ञ करना आवश्यक है। इस प्रकार यज्ञ के स्वरूप और उसकी सही विधि व लाभों
से आर्य समाज ने ही सबको अवगत करवाया।<br /><br /><b>शुद्धि संस्कार व सनातन धर्म रक्षा</b>
– सनातन धर्म से दूर हो गए अनेक हिंदुओं को पुनः शुद्धि कर सनातन धर्म
में प्रवेश देने का कार्य आर्य समाज ने ही प्रारम्भ किया। इसी प्रकार अनेक
भाई-बहन जो किसी अन्य संप्रदाय में जन्में यदि वे सनातन धर्म में आना
चाहते थे, तो कोई व्यवस्था नहीं थी, किन्तु आर्य समाज ने उन्हे शुद्ध कर
सनातन धर्म में दीक्षा दी, यह मार्ग आर्य समाज ने ही दिखाया। इससे करोड़ों
व्यक्ति आज विधर्मी होने से बचे हैं। सनातन धर्म का प्रहरी आर्य समाज है।
जब-जब सनातन धर्म पर कोई आक्षेप लगाए, महापुरुषों पर किसी ने कीचड़ उछाला
तो ऐसे लोगों को आर्य समाज ने ही जवाब देकर चुप किया। हैदराबाद निजाम ने
सांप्रदायिक कट्टरता के कारण हिन्दू मान्यताओं पर 16 प्रतिबंध लगाए थे
जिनमें – धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक रीतिरिवाज सम्मिलित थे। सन् 1937 में
पंद्रह हजार से अधिक आर्य व उसके सहयोगी जेल गए तीव्र आंदोलन किया, कई
शहीद हो गए।<br /><br />निजाम ने
घबराकर सारी पाबन्दियाँ उठा ली, जिन व्यक्तियों ने आर्य समाज के द्वारा
चलाये आंदोलन में भाग लिया, कारागार गए उन्हे भारत शासन द्वारा
स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों की भांति सम्मान देकर पेंशन दी जा रही है।<br /><br />सन्
1983 में दक्षिण भारत मीनाक्षीपुरम में पूरे गाँव को मुस्लिम बना दिया
गया था। शिव मंदिर को मस्जिद बना दिया गया था। सम्पूर्ण भारत से आर्यसमाज
के द्वारा आंदोलन किया गया और वहाँ जाकर हजारों आर्य समाजियों ने शुद्धि
हेतु प्रयास किया और पुनः सनातन धर्म में सभी को दीक्षित किया, मंदिर की
पुनः स्थापना की।<br /><br />कश्मीर में जब हिंदुओं के मंदिर तोड़ना प्रारम्भ हुआ तो उनकी ओर से आर्य समाज ने प्रयास किया और शासन से 10 करोड़ का मुआवजा दिलवाया।<br /><br />ऐसे अनेक कार्य हैं, जिनमें आर्य समाज सनातन धर्म की रक्षा के लिए आगे आया और संघर्ष किया बलिदान भी दिया।<br /><br />इस
प्रकार आर्य समाज मानव मात्र की उन्नति करने वाला संगठन है, जिसका
उद्देश्य शारीरिक, आत्मिक व सामाजिक उन्नति करना है। वह अपनी ही उन्नति से
संतुष्ट न रहकर सबकी उन्नति में अपनी उन्नति मानता है।<br /><br />इसलिए
आर्य समाज को जो मानव मात्र की उन्नति के लिए, सनातन संस्कृति के लिए
प्र्यत्नरत है उसके सहयोगी बनें। परंतु आर्य समाज के प्रति भ्रम होने से
कुछ ऐसा है –<br /><br /><b> जिन्हें </b><b>फिक्र है ज़ख्म की</b><b>, </b><b>उन्हे कातिल समझते हैं।</b><br /><br /><b> फिर तो</b><b>,</b><b> यो ज़ख्म कभी ठीक हो </b><b>नहीं</b><b> सकता ॥</b></span><span style="color: black;"></span><br />
</div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-33565493337922208872012-01-13T00:16:00.000-08:002012-10-07T06:01:21.035-07:00मैंने इंसानियत को मरते देखा है।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<b>||</b><b> ओ३म् </b><b>||</b><br />
<div style="text-align: left;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7H5TiWw2k2o79QYGTCxDvAbP3WZfPydSSs1KjkqsP1M4m08Q2isz_X_e_XqPNwYK0ugCPqQ6VUliU7O7J8NOY-2v5IONnl4w08IxbNA_DG_W-4vVQJGrLXhb-rb75f_vw5zz0qU_HizA/s1600/_death_was_a_man.preview.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7H5TiWw2k2o79QYGTCxDvAbP3WZfPydSSs1KjkqsP1M4m08Q2isz_X_e_XqPNwYK0ugCPqQ6VUliU7O7J8NOY-2v5IONnl4w08IxbNA_DG_W-4vVQJGrLXhb-rb75f_vw5zz0qU_HizA/s320/_death_was_a_man.preview.jpg" width="320" /></a></div>
आज मुझे एक गहरी जानकारी एवं अनुभव से रूबरू होना पड़ा और यह ज्ञात हुआ कि <b>‘</b><b>इंसान जन्म नहीं लेता है बल्कि इंसान तो बनना पड़ता हैं</b><b>’</b><b>। </b><br />
बात आज शाम की है यानि कि ४ नवम्बर २०११ की। शाम के करीब ७ बज रहें होंगे, मैं जरा एटीएम जा रहा था, अचानक देखता हूँ की कुछ मुस्लिम लड़के एक गाय को घेर कर खड़े थे जो कि एक पेड़ मे बंधी हुई थी। मुझे समझते देर न लगी कि ये लोग क्या कर रहे हैं, क्यूंकि दो दिन बाद बकरीद है और हफ्ते भर पहले से ही गायों को गाड़ियों में भर भर कर मंजिल (बूचड़-खाना) तक पहुचाना शुरू हो गया था।<br />
मैं सहसा ही रुक गया और उन लोगो के पास जाकर पूछा कि आप लोग ये क्या कर रहे हो ?<br />
इस पर पहले तो वो लोग मुझे ऊपर से नीचे तक घूरने लगे, फिर उनमे से से एक बोला कि पीछे हट जाओ ये गाय मारती है।<br />
मैंने कहा वो तो ठीक है पर ये गाय है किसकी और क्यूँ इसे बांधे रक्खा है ? फिर उनमे से ही एक बोला कि गाय हमारी है और हम इसे चितपुर बाज़ार मस्जिद में ले जा रहे हैं, परसो नीलामी है और यह गाय कुर्बानी के लिए जा रही है।<br />
<a name='more'></a><br />
बस इतना सुनना था कि मेरा खून खौल उठा, मैंने उन्हे चेतावनी देते हुये कहा कि गाय को तुरंत छोड़ दो। उसके बाद मैंने गाय को छुड़ाने का प्रयत्न शुरू कर दिया, वो लोग ७ – ८ लड़के थे और मैं अकेला, मैंने मित्रो और साथियों को तुरंत फोन करके बुलाया और इधर वो लोग भी मौके के नजाकत को समझते हुये उस गाय को गाड़ी (TATA ace) में चढ़ाने लगे।<br />
इतना सब होते होते वहाँ काफी लोग इकट्ठे हो गए जो सभी बंगाली थे, मैं उन सभी लोगो से अनुरोध करने लगा कि कृपया इन कातिलो से अपनी माता को बचाओ पर उन लोगो पर जैसे कोई असर ही नहीं हो रहा था। वो लोग बस उस ममता रूपी गाय को तड़पते और उछलते देखकर आनंद ले रहे थे। और उधर उन कातिलों ने गाय को गाड़ी मे चढ़ा कर बांध दिया। मैं बस चिल्लाता रह गया, इधर जब तक मेरे साथी पहुचते तब तक वे कातिल गाड़ी को लेकर फरार हो गए।<br />
<b>मैं </b><b>सोचने लगा </b><b>कि</b><b> क्या यही इंसानियत है </b><b>?</b> <b>कहाँ </b><b>गयी वो दया</b><b>, </b><b>करुणा जो </b><b>एक इंसान को इंसान बनाती है।</b> आज प्राय प्रायः लोगों में इंसानियत लुप्त हो चुकी हैं, उनके अंदर न प्राणियों के प्रति दया है और न ही रहम। मैं बस खुद को कोसता और धिक्कार्ता हुआ रह गया।<br />
पर इस पूरे घटनाकर्म के पीछे एक बहुत बड़ा प्रश्न रह गया और वह यह कि <b>क्या इंसानियत मर चुकी है </b><b>?</b><br />
इसका उत्तर जो भी हो पर हाँ आज<b>‘</b><b>मैंने इंसानियत को मरते हुये देखा है</b><b>’</b><b>।</b><br />
<b></b><br /></div>
</div>
</div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5945266076350827449.post-53228965571035516032011-09-06T06:06:00.000-07:002012-10-07T05:45:11.479-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<a name='more'></a>Coming Soon........</div>
संजय अग्रहरिhttp://www.blogger.com/profile/01297459701566304711noreply@blogger.com0