गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

0 अम्बेडकर जयंती

 ||ओ३म्||





आज अम्बेडकर जयंती है।
वैचारिक तौर पर मैं उनसे बहुत से विषयों पर सहमत नहीं हूँ,
पर जातिवाद और उंच नीच के बेड़ियों को तोड़ने का उनका प्रयास सराहनीय है।
ऐसे समय में जब दलित भाइयो को चलते समय अपने हाथ में एक कटोरा और दूसरे हाथ में झाड़ू लेकर चलना पड़ता था ताकि
रास्ते में उनके पैरो के निसान न पड़ जाये और अगर मुह में थूक आये तो हाथ में लिए हुए कटोरे में थूकना पड़ जाये तो आप सोच सकते है
की मानसिक तौर पर उनका हर रोज कितना बलात्कार होता था ?
मैं तो ऐसे परिस्थितियों को सोच कर ही काँप जाता हूँ, पर उन बेचारो ने तो उसे झेला है।
ऐसे घनघोर बादल में बारिस की बून्द की तरह अम्बेडकर का जन्म हुआ।
कीचड से निकल कर कमल की तरह खिलना ये कोई साधारण मनुष्य नही कर सकता।
नीची जाती का दर्द एक ऊँची जाती वाला कभी समझ नहीं सकता हाँ उसे महसूस करने की कोशिश भर कर सकता है।
और वही कोशिश मैं भी आज कर रहा हूँ।

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