मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

2 मैं ऐसा क्यों हूँ ?




मैं एक आजाद परिंदे की भाँति खुले आसमान में उड़ना चाहता हूँ, कभी इस डाल तो कभी उस डाल पर बैठना चाहता हूँ।
हवाओ की भांति चहुँ वोर बह जाना चाहता हूँ, लोगो के दिलो में बस जाना चाहता हूँ।
जरूरतमंदों के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर देना चाहता हूँ, अपने वतन के लिए मर जाना चाहता हूँ।
इस जद्दोजहद भरी जिंदगी में बहुत कुछ करना चाहता हूँ, लेकिन न जाने क्यों मैं बहुत कुछ करने की तैयारी ही कर पाता हूँ।
हर वो कार्य जो मेरे दिल में है, उसे कर पाने की बस तैयारी ही कर पाता हूँ।
ये ऐसा क्यों हूँ मैं ये खुद को भी न कह पाता हूँ,


इस रंगभरी दुनिया में इतना असहज और अंजान क्यों हूँ मैं ?
न जाने कब बदलेंगी मेरी ख्वाइशें न जाने कब बदलेंगी इस जीवन की तस्वीरें ।
खुद को समझा भी नहीं पाता और किसी को बता भी नहीं पता, न जाने कब टूटेगी मेरी ख़ामोशी।
इस उलझन में अब उलझते जा रहा हूँ, हे प्रभु मैं तुझमे खो जाना चाहता हूँ।
कौन हूँ मैं क्या हूँ मैं और क्यों हूँ मैं इसका उत्तर भी न दे पाता हूँ।
मैं ऐसा क्यों हूँ, ये खुद को भी न बता पता हूँ ।

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