मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

0 शाकाहार और मांसाहार

||ओ३म्||

शाकाहार एवं मांसाहार हमेशा से एक तथाकथित विवादित विषय रहा है, और अधिकतर इस विषय पर चर्चा करते हुए लोग मिल जाते है, जहाँ एक दूसरे पर अपनी वाली थोपी जाती है या कुछ मित्र ये कह कर अपना पल्ला झाड़ लेते है कि किसी के भोजन पर ऊँगली न उठायें।
पर प्रश्न यह उठता है कि यहाँ किसी कौन है ?
भोजन तो वह होता है जो सभी मनुष्य पर लागू हो क्योंकि सभी मनुष्यों की शारीरिक संरचना एक ही है।
हमारे बड़े बुजुर्ग कहते आये है कि पहली पूँजी शरीर है।
पहले यह जानने का प्रयास करते है कि प्रकृति ने हमें क्या बनाया है। क्या मनुष्य प्रकृति रचना के अनुसार शाकाहारी है ?
इसका निश्चय निम्न तुलनात्मक तालिका से किया जा सकता है-
शाकाहारी प्राणी                                                                         मांसाहारी प्राणी
१) नवजात शिशुओं की आँखे जन्म लेते ही खुली होती है।            १)जन्म के समय आँखे बंद होती है ३ से                                                                                                       ८  दिन के पश्चात् आँखे खुलती है।
२) ये होंटो से पानी पीते है।                                              २) जीभ से पानी पीते है।पीते समय आवाज आती है।

३) इन्हें पसीना आता है।।                                                                                  ३) इन्हें पसीना नहीं आता है।
४) नाख़ून या खुर लंबे नहीं होते है।                                                                  ४) नाख़ून और खुर लंबे होते है।
५) दाँतो में अंतर नहीं होता, अपितु एक दूसरे के निकट होती है।                               ५) दाँतो में अंतर होता है।
६) दूध के दाँत गिरने के पश्चात् नए दाँत आते है।         ६) जन्म के समय दाँत होते है जो गिरते नहीं और नए 
दाँत आते नहीं।
७) हरितद्रव्यों Chlorophyll को पचाने की क्षमता होती है।       ७) हरितद्रव्यों को पचाने की क्षमता नहीं होती है।
८) ये शिकार नहीं कर सकते।                                      ८) किसी भी हथियार के बिना ही शिकार कर सकते है।
९) शाकाहारी दीर्घायु होते है।                                                                             ९) मांसाहारी अल्पायु होते है।
१०) रक्त को पचा नहीं सकते।                                                               १०) पिए हुए रक्त को पचा सकते है।
लेख के बड़े होने के भय से ये कुछ भेद संक्षेप में बताये गए।
इस प्रकार मूलतः शाकाहारी तथा मांसाहारी प्राणियों में अनेक भेद पाये जाते है, अब इन दोनों श्रेणियों में मनुष्य किस श्रेणी से अधिक सम्बन्ध है ये आप स्वयं विचार करे।


शाकाहार का मनुष्य पर प्रभाव  मांसाहार का मनुष्य पर प्रभाव
१) इन पर रोगों का प्रभाव कम होता है, B.P नहीं बढ़ता, हृदयरोग नहीं होते है। १) इन पर रोगों का प्रभाव अधिक होता है, B.P बढ़ता है। हृदयरोग होते है।
२) दौड़ने में शारीरिक श्रम करने में साँस फूलती नहीं। २) शारीरिक श्रम से साँस जल्दी फूलती है।
३) मन संतुष्ट रहता है। ३) मन अशांत होता है।
४) इनका रक्त क्षारयुक्त होता है। ४) इनका रक्त अमलयुक्त होता है।
५) सत्वगुण की वृद्धि से सूक्ष्म शरीर, मन, बुद्धि, चित शुद्ध होते है तथा प्रवृति सात्विक होती है।  ५) रजोगुण एवं तमोगुण की वृद्धि से सूक्ष्म शरीर में अशुद्धि बढ़ती है, दुष्प्रवृत्ति भी बढ़ने लगती है।

ग्लोबल वार्मिंग और मांसाहार में सम्बन्ध
अगर आप मांस खाते है तो दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी ग्लोबल वार्मिंग के लिए आप भी जिम्मेदार है।
१) मांस उत्पादन ज्यादा पानी की बर्बादी
२) ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन
३) संसाधनों पर बढ़ता दबाव
४) जानवरो विशेषकर गाय और सुअर द्वारा सीधे उत्सर्जित मीथेन ग्लोबल वार्मिंग गैसों में कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में २३ गुना हानिकारक है
५) १ किलो मांस के उत्पादन में १५ से २० हजार लीटर पानी की खपत होती है वही १ किलो गेहूं के उत्पादन में मात्र २ हजार लीटर पानी की खपत होती है।
अब आप स्वयं विचारे हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कितना जहर और पानी की किल्लत छोड़ कर जा रहे है।

मांसाहार तथा आर्थिक व्यवस्था
मांसाहार के कारण आर्थिक व्यवस्था भी बिगड़ जाती है। मांस के लिए प्राणियों की हत्या की जाती है, जिससे पशुजन्य दूध, खाद आदि पदार्थ का आभाव होता है। मांसाहार में घी, तेल और मसालों का प्रयोग भी अधिक मात्रा में होता है। मांसाहार के साथ-साथ शराब का प्रयोग भी बढ़ जाता है। मांस और शराब आदि के सेवन से मनुष्य व्यसनाधीन, प्रमादी और आलसी बनता है, जिसका अंत कंगाली में होता है। फलस्वरूप राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था भी प्रभावित होती है।

लिखने को तो बहुत है मित्रो पर लेख के विस्तार भय से इसे संक्षिप्त में लिख रहा हूँ।
अंत में एक बात ईश्वर ने हमें मनुष्य बनाया है तो हमें अपना खानपान और व्यवहार भी मनुष्य की तरह ही करनी चाहिए वरना हमारे और पशु में कोई भेद नहीं रह जायेगा।
आपका  एक अदना सा वैदिक विद्द्यार्थी
संजय अग्रहरि

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