सोमवार, 21 मार्च 2016

0 जीव हत्या पाप नहीं।

||ओ३म्||


मित्रों, आप इस लेख के शीर्षक को देख कर चौंक गए होंगे और सोच रहे होंगे कि ये क्या अनर्गल बात है।
'संजय ' पागल हो गया है या नशे में लिख रहा है ?
पर मित्रो मैं बिलकुल ठीक हूँ और उम्मीद करता हूँ  कि इस लेख को आखिरी तक पढ़ते पढ़ते आप भी मुझसे सहमत होंगे।
ईश्वर ने हमे हर कार्य करने की आजादी दी है यहाँ तक कि हम क्या करे क्या खाये सभी में हम स्वतंत्र है, ईश्वर की तरफ से हम पर कोई रोक टोक नहीं है।
पर सभी कर्मो के फल पाने में हम परतंत्र है ये विषय ईश्वर के अधीन है हमारे अच्छे बुरे कर्मो का फल हमे समयानुसार मिलता रहता है और रहेगा।
पर प्रश्न ये है कि फिर ये पाप पुण्य का क्या चक्कर है ?
क्योंकि आये दिन हमे शाकाहारी मित्रो द्वारा सुनने को मिलता है कि जीव हत्या पाप है और मांसाहारी कहते है कि फिर तो तुम भी पापी हो क्योंकि पेड़ पौधों में भी जीव होता है।
फिर एक बहस और तर्क कुतर्क का दौर चलता है पर अंत में उत्तर कुछ नहीं निकलता दोनों पक्ष अपनी डफली अपना राग अलापते रहते है।
चलिये अब इस विषय को किसी और दृष्टिकोण से समझते है।

ईश्वर ने प्रकृति में रहने वाले सभी जीवो के लिए भोजन की व्यवस्था की हुई है, अब शेर का प्राकृतिक भोजन मांस है और पेड़ पौधे उसके भोजन नहीं है।
अब प्रकृति के नियमानुसार शेर एक हिरण को खाता है तो उसे न तो पुण्य मिलेगा और न ही उसे पाप लगेगा क्योंकि प्रकृति द्वारा निर्धारित एवं अपने जीवन को जीने के लिए उसने उसके शारीरिक रचना अनुसार भोजन किया।
अब वैसे ही मनुष्य का प्राकृतिक भोजन शाकाहार है जिसे आज वैज्ञानिक भी मान चुके है।
पेड़ पौधे में भी जीव होता है, पर क्योंकि मनुष्य प्रकृति द्वारा निर्धारित और अपने शारीरिक रचना के अनुसार पेड़ पौधे से निर्मित साग सब्जियाँ खाता है तो न ही उसे पुण्य मिलेगा और न ही पाप लगेगा।
अब ईश्वर के नियमानुसार सभी जीव अपने अपने भोजन को करते है तो किसी को जीव हत्या का पाप नहीं लगता और न ही नहीं करने पर पुण्य मिलता है ।
अब बात यहाँ पर तब बिगड़ती है जब हम प्रकृति द्वारा निर्धारित भोजन के साथ साथ विपरीत भोजन भी लेने लगते है और ईश्वरीय व्यवस्थाओ के साथ छेड़ छाड़ करने लगते है।
क्योंकि मांस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं है तो इसका दुष्परिणाम भी हमे देखने को मिलता है और आज कई तरह की बिमारियों ने हमे मांसाहार के वजह से घेर रखा है।
अब जो मांसाहारी व्यक्ति है वो खुद को नीचा हो जाने के डर से शाकाहारियों पर तरह तरह के आक्षेप लगाते रहते है उन्ही में से एक है जीव हत्या।
यहाँ एक बात स्पष्ट है कि जीव अमर है और उसकी हत्या हो ही नहीं सकती, पर फिर भी प्रकृति द्वारा निर्धारित भोजन लेने में कोई भी पाप नहीं लगता।
पाप तो तब होता है जब आप नियम के विपरीत जाकर बलात् पूर्वक किसी का रक्तपात करके भोजन करते है।
और एक बात सर्वदा सत्य है कि किये गए पापों का फल इसी पृथ्वी पर भोग कर जाना पड़ेगा क्योंकि कर्मफल सिद्धांत अकाट्य है।
हमारी शारीरिक बनावट और मांसाहारी जीवो की शारीरिक बनावट में साफ साफ अंतर दिखाई देता है।
पर आज कल फैशन के नाम पर तो कही आधुनिकता के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर मनुष्य रक्त और मांस का सेवन करने लगा है।
एक तरफ तो लाश को छू कर नहाते है दूसरी तरफ लाश को पेट में भरकर मंदिर रूपी शरीर को कब्रिस्तान बनाते है। आज तो मनुष्य कम और मनुष्य के रूप में हिंसक रक्तपात ज्यादा होते जा रहे है।
मित्रों लिखने को तो बहुत कुछ है पर लेख लंबा न हो इसलिए संक्षिप्त में लिख रहा हूँ।
मांसाहारी मित्रों एक बात सदा ध्यान रखे कि जीव हत्या पाप है या पुण्य है ये ज्यादा सोचने की बात नहीं है। इससे बढ़कर ये सोचे और आईने में खुद को देखकर बताये  क्या आप एक मनुष्य कहलाने लायक है ?

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